#करो न (dos), करो ना (donts) - Chitra Mudgal
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प्यासे कौए की कहानी से कौन इंसान अंजान होगा? जिसमें एक होशियार कौआ घड़े के पेंदे में पड़े हुए ज़रा से पानी को ऊपर लाने के लिए एक-एक कर उसमें तब तक कंकड़ डालता है, जब तक पानी इतना ऊपर नहीं आ जाता कि उसकी चोंच पानी तक पहुँच जाए और वह उसे पीकर अपनी प्यास बुझा ले| बाल-साहित्य का अभिन्न अंग बन चुकी यह कहानी आज दुनिया भर में मशहूर है और अनगिनत भाषाओं में पाई जाती है| लेकिन आज ज़माना है, सोशल मीडिया साहित्य का| कुछ अर्सा पहले सोशल मीडिया पर इसी प्यासे कौए की कहानी की एक अलग ही अभिव्यक्ति नज़रों से गुज़री| कहानी की शुरुआत बिल्कुल असल कहानी जैसी ही थी| पर उसका सार अलग और कुछ यूँ था|
प्यासे कौए ने घड़े में झाँका| पानी बहुत कम था| उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुँच सकती थी| उसने आस-पास कुछ कंकड़ पड़े देखे| उसे तुरंत अपने परदादा के परदादा और उनके भी परदादा की विश्वप्रसिद्ध कहानी याद आ गई, जिसके लिए सदियों से उनकी तारीफ़ दुनिया के हर कोने में की जाती रही है| लेकिन 21वीं सदी के आधुनिक कौए ने अपने पूर्वज की समझदारी दोहराने के बजाए, अपनी ख़ुद की होशियारी से काम लेना ज़्यादा मुनासिब समझा| एक-एक कंकड़ छोटी सी चोंच से चुनते और उसे घड़े में डालते-डालते तो हालत और ख़राब हो जाएगी| एक तो प्यास, उस पर यह मशक़्क़त| न बाबा न| इसमें कहीं जान चली गई तो? और बस कौए ने फ़ौरन अपनी होशियारी का परिचय दिया| घड़े के सबसे निचले हिस्से पर चोंच से भरपूर वार किया| तुरंत वहाँ एक छेद हो गया और घड़े के अंदर भरा हुआ पानी बाहर छलक आया| कौए ने जी भर के पानी पिया| अपनी प्यास बुझाई और फुर्र से उड़ गया|
दोनों ही कहानियाँ शिक्षाप्रद हैं| अंतर बस इतना सा है कि पहली हमें यह सिखाती है कि विपत्ति के समय धैर्य और सूझबूझ से काम लेना चाहिए, घबराना नहीं चाहिए| जबकि दूसरी में भी विपत्ति के समय सूझबूझ से काम लेने और न घबराने की बात तो है; पर जो चीज़ ग़ायब है, वह है धैर्य; और उसकी जगह ले ली है अधीरता ने, स्वार्थ ने, शॉर्टकट ने| अधीरता, स्वार्थ और शॉर्टकट ही थे जिन्होंने घड़े को इस लायक़ नहीं छोड़ा कि उसके अंदर मौजूद थोड़े से पानी से कौए के बाद कोई और भी अपनी प्यास बुझा सके|
वैसे हम इंसान भी तो आज यही कर रहे हैं| कोविड-19 के इस कठिन दौर में यह अधीरता, स्वार्थ और शॉर्टकट कुछ ज़्यादा ही उजागर हो रहे हैं, जिन्हें देखकर असल साहित्यकार का दिल रो उठा है| चित्रा मुदगल वह वरिष्ठ लेखिका हैं, जिन्होंने अपने साहित्य द्वारा ऐसे-ऐसे मुद्दों को उठाया, जिन पर अक्सर लोग सोचते भी नहीं थे| कोविड-19 के बारे में भी नक़्श से बात करते हुए चित्रा जी भावुक हो गईं| हमारे अनुरोध पर कोविड मरीज़ों के प्रति समाज के रवैय्ये और ज़िम्मेदारी के विषय में उन्होंने अपना संदेश दिया|
Thank you so much "Chitra Mudgal ji" for your message regarding #Karo na, karo naa..
[Chitra Mudgal is a senior writer and winner of several prestigious awards.
https://en.wikipedia.org/wiki/Chitra_Mudgal]
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