Thursday, September 30, 2021

#करो_न_करो_ना - कोविड वैक्सीनेशन : सुश्री आरती यादव

 


#करो_न_करो_ना - कोविड वैक्सीनेशन : सुश्री आरती यादव, अपनी माँ की याद में....

https://youtube.com/shorts/RUVt-DQttPU?feature=share


चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वो कौन सा देस, जहाँ तुम चले गए |

इस दिल पे लगा के ठेस, जाने वो कौन सा देस, जहाँ तुम चले गए ||

 

आनन्द बक्षी की यह ग़ज़ल,1998 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दुश्मन' में हमने पहली बार सुनी थी | उस वक़्त आरती शायद इतनी छोटी रही होंगी कि उन्हें इस ग़ज़ल के मायने समझ नहीं आए होंगे | मगर बेरहम कोविड-19 ने उन्हें ज़िंदगी का सबसे बड़ा दुख दिया, उनसे उनकी माँ छीन ली और पलक झपकते हमेशा खिलखिलाने-चहचहाने वाली आरती को इतना मैच्योर बना दिया कि आज यूँ लगता है मानो इस ग़ज़ल का हर शेर उनकी व्यथा बयान करता हो | 

नक़्श के अभियान #करो_न_करो_ना के दूसरे चरण के लिए टीकाकरण की अपील समाज से करके एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य तो आरती ने निभा दिया, मगर ज़ालिम कोविड की बेदर्दी का शिकार, अपनी माँ से बिछड़ी बेटी कैमरा के सामने अपना दर्द न बयान कर सकी | जब आरती की मम्मी श्री मती किरण बाला अस्पताल में दाख़िल थीं, तब हर चंद कोशिशों के बावजूद आरती उनके आख़िरी वक़्त में उनके पास न रह सकीं | वॉर्ड के बाहर वो तड़पती रहीं कि किसी तरह माँ के पास पहुँच जाएँ और उनका ख़याल रख सकें, पर स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल के स्टाफ़ ने इसकी इजाज़त नहीं दी | यह याद करके उनके आँसू नहीं थमते हैं कि अनगिनत बार वार्ड से उनकी मम्मी ने उन्हें फ़ोन करके बाक़ायदा उनसे मिन्नतें की थीं कि "आरती, मुझे यहाँ से ले जा, वर्ना मैं मर जाउँगी |" पर आरती उस वक़्त इतनी बेबस हो के रह गई थीं कि कुछ न कर सकीं |


एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी, जाते-जाते तुमने, आवाज़ तो दी होगी |

हर वक़्त यही है गम, उस वक़्त कहाँ थे हम, कहाँ तुम चले गए ||


टीस तो यह भी उठती है, तकलीफ़ तो यह भी सालती है आरती को कि सिर्फ़ जीते-जी ही नहीं, उनके जाने के बाद भी वो अपनी माँ का हक़ अदा न कर सकीं | उनकी अंतिम क्रियाएँ भी बेदर्द कोविड की वजह से ढंग से न निभा सकीं | ग़ाज़ियाबाद में रहने वाली आरती को न इसकी इजाज़त दी गई कि वो अपनी माँ का पार्थिव शरीर अपने घर ले जा कर वहाँ से विधि-विधान पूर्वक उनका अंतिम संस्कार कर सकें और न ही इतनी मोहलत उन्हें मयस्सर हो सकी कि उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए  कम से कम घरवालों को ही बुला लें | माँ के पार्थिव शरीर का आनन-फ़ानन में अंतिम संस्कार करना बेटी की वो मजबूरी बन गई, जिसने उसके दिल पर कभी न भरने वाला एक और ज़ख़्म बना दिया |


हर चीज़ पे अश्कों से, लिक्खा है तुम्हारा नाम, ये रस्ते घर गलियाँ, तुम्हें कर ना सके सलाम|

हाय दिल में रह गई बात, जल्दी से छुड़ा कर हाथ, कहाँ तुम चले गए||


माँ के जाने से आरती की मानो दुनिया ही लुट गई | हालांकि माँ की दी हुई सीख ने ही उन्हें यह हिम्मत दी कि बुरी तरह बिखर चुकी ज़िंदगी के एक-एक टुकड़े को समेट कर दोबारा उसी तरह जीने की पूरी कोशिश कर रही हैं आरती, लेकिन जो नासूर कोविड ने उन्हें दिया है, उस तकलीफ़ की शिद्दत उनके अलावा और किसी के लिए महसूस कर सकना शायद नामुमकिन है |


अब यादों के कांटे, इस दिल में चुभते हैं, ना दर्द ठहरता है, ना आंसू रुकते हैं |

तुम्हें ढूंढ रहा है प्यार, हम कैसे करें इक़रार, के हाँ तुम चले गए ||


सुश्री आरती यादव के दुख की भरपाई कोई शब्द, किसी की सांत्वना कभी नहीं कर सकते | बस हम जो कर सकते हैं, वो यह कि उनकी अपील पर अमल करते हुए, वैक्सीनेट हो कर, एक कोविड रहित स्वस्थ समाज का उपहार आने वाली नस्लों को दें, ताकि फिर कोई, अपने प्रियजनों की अंतिम विदाई पर इतना मजबूर न हो जैसे आरती हुईं |

आरती जी, अपने अथाह दर्द के बावजूद, हमारे अभियान में सहयोग के लिए, आपका बहुत धन्यवाद | हमारी दुआ है कि आप इस दुख को सह कर वैसी सशक्त आरती बन सकें, जैसी आरती को आपकी मम्मी हमेशा देखना चाहती थीं | श्री मती किरण बाला जी को नक़्श की ओर से श्रद्धांजलि |


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Saturday, September 25, 2021

#करो_न_करो_ना - कोविड वैक्सीनेशन : डॉक्टर शहनाज़ अख़तर





#करो_न_करो_ना - कोविड वैक्सीनेशन : डॉक्टर शहनाज़ अख़तर, रिसर्च साइंटिस्ट 

               https://youtu.be/pF_r_G02TAY



Prevention is better than cure. यानी बचाव इलाज से बेहतर है | यह बात जानते तो सब हैं लेकिन कोविड के संदर्भ में इस पर अमल करने से अब भी भारत का एक बड़ा वर्ग हिचकिचाहट में है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार 16 जनवरी 2021 से शुरू हुए कोविड टीकाकरण कार्यक्रम ने 13 सितम्बर 2021 को 75 करोड वैक्सीनेशन डोज़ का लक्ष्य पूरा कर लिया | यानी अब तक देश की आधी से ज़्यादा आबादी वैक्सीनेट हो चुकी है | मगर अपने आस-पास नज़र दौड़ाएँ तो पढ़े-लिखे, जागरुक और टैक्नीकली साउंड लोगों के अलावा सिर्फ़ उन्हीं के टीका लगा हुआ पाएँगे, जिन्हें ऐसी कोई मजबूरी है कि रोज़गार तभी मिलेगा, जब टीका लगवा लेंगे | या डॉक्टर तभी इलाज करेगा, जब वैक्सीनेटिड होंगे | या दूसरे शहर तभी जा सकेंगे, जब टीका लगा होने का सर्टिफ़िकेट हाथ में होगा आदि | वर्ना जहाँ तक हो सके यह वर्ग टीका लगवाने से अब भी कतरा रहा है | 

ये मासूम लोग शायद यह मानना ही नहीं चाहते कि कोविड महामारी से बचाव का सबसे बड़ा हथियार अब तक सिर्फ़ वैक्सीनेशन ही है | या कोविड अक्सर बहुत तकलीफ़देह यहाँ तक कि कई बार जानलेवा बीमारी भी साबित होती है | कोविड से होने वाली तकलीफ़ सिर्फ़ वो ही समझ सकता है, जो इसकी चपेट में आ चुका है | न केवल कोविड के दौरान बल्कि बाद में भी कोरोना वायरस के long term effects और post-COVID complications ने अनगिनत लोगों को अपना शिकार बनाया है | जिसमें Severe Acute Respiratory Syndrome आमतौर पर पाया गया | इसके कारण lungs, brain, blood vessels, skin, nerves, kidney और heart संबंधी समस्याओं से कई-कई माह मरीज़ों को जूझना पड़ा | न सिर्फ़ जिस्मानी बल्कि दिमाग़ी तनाव से भी गुज़रना पड़ा | यह सब महज़ कही-सुनी कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि हमारे इर्द-गिर्द ही, हमारे पड़ोसी, रिश्तेदार, साथी, दोस्त और कई बार हमारे परिवार वाले ही इस बेदर्द वायरस का शिकार हो चुके हैं |

डॉक्टर शहनाज़ अख़तर भी, जो देश की एक टॉप फ़ार्मास्युटिकल कंपनी में रिसर्च साइंटिस्ट हैं, उन्हीं में से एक हैं, जो अंजाने और अनचाहे ही न सिर्फ़ कोविड की ज़द में आ कर ज़िंदगी और मौत के बीच की बाल से भी बारीक डगर को तय करके दोबारा जिंदगी के हसीन सफ़र पर लौट आईं, बल्कि post covid complications का सामना करते हुए कई माह तक सेहत और बीमारी के दर्मियान होने वाले ख़ौफ़नाक खेल की भुक्तभोगी भी साबित हुईं | अपनी आपबीती को बेहद कम अल्फ़ाज़ में हम तक पहुँचा कर हर ख़ास-ओ-आम से वैक्सीनेट होने की अपील करती डॉ. शहनाज़ अख़तर का दर्द उनकी ज़बान ही नहीं, बल्कि चेहरे और आँखों में भी दिखता है | जो सिर्फ़ यही कहता महसूस होता है कि मेहरबानी करके सब टीका लगवा लें | ख़ुद भी सुरक्षित हो जाएँ और एक निरोग सुरक्षित समाज के निर्माण में भी अपना योगदान दें |
#करो_न_करो_ना का नक़्श का यह दूसरा चरण है, जिसे हमने आज ख़ासतौर पर 25 सितम्बर से शुरू किया है क्योंकि आज डॉ. शहनाज़ अख़तर की सालगिरह भी है | जिंदगी सबसे क़ीमती है, यह संदेश देने का इससे बेहतर कोई मौक़ा नहीं हो सकता था | 

हमारे अभियान में अपना योगदान देने के लिए डॉ. शहनाज़ अख़तर, आपका बेहद शुक्रिया | साथ ही आपके जन्मदिन पर आपको A Very Happy Birthday और आपके साथ-साथ हर covid survivor के लिए एक लंबी, सेहतमंद ज़िंदगी की शुभकामनाएँ |

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