#करो_न_करो_ना - कोविड वैक्सीनेशन : डॉक्टर शहनाज़ अख़तर, रिसर्च साइंटिस्ट
Prevention is better than cure. यानी बचाव इलाज से बेहतर है | यह बात जानते तो सब हैं लेकिन कोविड के संदर्भ में इस पर अमल करने से अब भी भारत का एक बड़ा वर्ग हिचकिचाहट में है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार 16 जनवरी 2021 से शुरू हुए कोविड टीकाकरण कार्यक्रम ने 13 सितम्बर 2021 को 75 करोड वैक्सीनेशन डोज़ का लक्ष्य पूरा कर लिया | यानी अब तक देश की आधी से ज़्यादा आबादी वैक्सीनेट हो चुकी है | मगर अपने आस-पास नज़र दौड़ाएँ तो पढ़े-लिखे, जागरुक और टैक्नीकली साउंड लोगों के अलावा सिर्फ़ उन्हीं के टीका लगा हुआ पाएँगे, जिन्हें ऐसी कोई मजबूरी है कि रोज़गार तभी मिलेगा, जब टीका लगवा लेंगे | या डॉक्टर तभी इलाज करेगा, जब वैक्सीनेटिड होंगे | या दूसरे शहर तभी जा सकेंगे, जब टीका लगा होने का सर्टिफ़िकेट हाथ में होगा आदि | वर्ना जहाँ तक हो सके यह वर्ग टीका लगवाने से अब भी कतरा रहा है |ये मासूम लोग शायद यह मानना ही नहीं चाहते कि कोविड महामारी से बचाव का सबसे बड़ा हथियार अब तक सिर्फ़ वैक्सीनेशन ही है | या कोविड अक्सर बहुत तकलीफ़देह यहाँ तक कि कई बार जानलेवा बीमारी भी साबित होती है | कोविड से होने वाली तकलीफ़ सिर्फ़ वो ही समझ सकता है, जो इसकी चपेट में आ चुका है | न केवल कोविड के दौरान बल्कि बाद में भी कोरोना वायरस के long term effects और post-COVID complications ने अनगिनत लोगों को अपना शिकार बनाया है | जिसमें Severe Acute Respiratory Syndrome आमतौर पर पाया गया | इसके कारण lungs, brain, blood vessels, skin, nerves, kidney और heart संबंधी समस्याओं से कई-कई माह मरीज़ों को जूझना पड़ा | न सिर्फ़ जिस्मानी बल्कि दिमाग़ी तनाव से भी गुज़रना पड़ा | यह सब महज़ कही-सुनी कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि हमारे इर्द-गिर्द ही, हमारे पड़ोसी, रिश्तेदार, साथी, दोस्त और कई बार हमारे परिवार वाले ही इस बेदर्द वायरस का शिकार हो चुके हैं |डॉक्टर शहनाज़ अख़तर भी, जो देश की एक टॉप फ़ार्मास्युटिकल कंपनी में रिसर्च साइंटिस्ट हैं, उन्हीं में से एक हैं, जो अंजाने और अनचाहे ही न सिर्फ़ कोविड की ज़द में आ कर ज़िंदगी और मौत के बीच की बाल से भी बारीक डगर को तय करके दोबारा जिंदगी के हसीन सफ़र पर लौट आईं, बल्कि post covid complications का सामना करते हुए कई माह तक सेहत और बीमारी के दर्मियान होने वाले ख़ौफ़नाक खेल की भुक्तभोगी भी साबित हुईं | अपनी आपबीती को बेहद कम अल्फ़ाज़ में हम तक पहुँचा कर हर ख़ास-ओ-आम से वैक्सीनेट होने की अपील करती डॉ. शहनाज़ अख़तर का दर्द उनकी ज़बान ही नहीं, बल्कि चेहरे और आँखों में भी दिखता है | जो सिर्फ़ यही कहता महसूस होता है कि मेहरबानी करके सब टीका लगवा लें | ख़ुद भी सुरक्षित हो जाएँ और एक निरोग सुरक्षित समाज के निर्माण में भी अपना योगदान दें |#करो_न_करो_ना का नक़्श का यह दूसरा चरण है, जिसे हमने आज ख़ासतौर पर 25 सितम्बर से शुरू किया है क्योंकि आज डॉ. शहनाज़ अख़तर की सालगिरह भी है | जिंदगी सबसे क़ीमती है, यह संदेश देने का इससे बेहतर कोई मौक़ा नहीं हो सकता था |हमारे अभियान में अपना योगदान देने के लिए डॉ. शहनाज़ अख़तर, आपका बेहद शुक्रिया | साथ ही आपके जन्मदिन पर आपको A Very Happy Birthday और आपके साथ-साथ हर covid survivor के लिए एक लंबी, सेहतमंद ज़िंदगी की शुभकामनाएँ |
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