Saturday, April 25, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Bharti Taneja

#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Bharti Taneja 

Dr. Bharti Taneja : Internationally Famed Renowned Beauty Expert 

बचपन से सुनते आए थे कि ख़ूबसूरती देखने वाले की नज़र में होती है | पर इस कहावत से रूबरू होने का, इसे समझने का, इसको जीने का मौक़ा अगर किसी ने मुहैय्या कराया तो वो है नोवल कोरोना वायरस कोविड-19.. न, ना | कोरोना का नाम सुन कर इतना बुरा मुँह न बनाएँ| क्योंकि सच यही है | 
ग़ौर कीजिए, आसमान तो हमेशा से ये ही था, पर हमारी छत के ऊपर यह इतना नीला भी हो सकता है कभी सोचने की हिम्मत तक न हुई थी | धुआँ-धुआँ बदरंग आसमान पर लॉकडाउन से पहले ग़लती से कभी नज़र पड़ भी जाती थी तो पहले से ही नकारात्मक ज़िंदगी की नकारात्मकता और भी सरबुलंद हो जाया करती थी | पर अब निहारिए, लॉकडाउन की देन, दूर तक फैले साफ़-सुथरे आसमान को |
सदियों से कलकल करती यमुना के बहाव पर औद्योगीकरण ने कुछ बरस से ऐसा प्रतिबंध लगा रखा था कि न तो इसका साफ़-शफ़्फ़ाफ़ पानी ही तसव्वुर किया जा सकता था और न ही इसके तट पर राधा-कृष्ण की रासलीला के नज़ारे की कल्पना | न तो इसका सड़ांध मारता पानी अपने निकट पल भर भी खड़े रहने की इजाज़त देता था और न ही गंदे नाले के रूप में तब्दील हो चुका इसका वुजूद कोई ऐसा विहंगम दृश्य ही प्रस्तुत करता था जिसे सहेजने को हमारे मोबाइल में मौजूद कैमरा मचल उठे | मगर अब देखिए इसी यमुना की लॉकडाउन की बदौलत दिन-ब-दिन बढ़ती ख़ूबसूरती |
रात में आकाश में तारे भी झिलमिला सकते हैं, कम से कम दो या तीन पीढ़ियाँ तो इस शाश्वत सत्य से पूरी तरह अनभिज्ञ थीं | परन्तु अब तारे ही नहीं, उल्का पिंड, आकाशगंगा, नक्षत्र और कुछ ग्रहों तक के दर्शन बिना दूरबीन या मामूली दूरबीन की मदद से आसानी से कर पा रहे हैं | अभी लॉकडाउन के कारण न तो वातावरण में वायु प्रदूषण की परत है और न ही प्रकाश प्रदूषण की अंधी चकाचौंध | तो फिर दीदार कीजिए लॉकडाउन के इस तोहफ़े यानी सितारों की दुनिया का |
पूर्णबंदी की वजह से अब तक ए. सी. की सर्विस नहीं हो पाई है | पर गर्मी भी तो ऐसी नहीं पड़ रही है कि बिना ए. सी. गुज़ारा किया ही न जा सके | असहनीय गर्मी पड़े भी तो भला कैसे? वजह तो लॉकडाउन के सामने सिसक-सिसक कर दम तोड़ रही है | और लोग एक बार फिर 70-80 के दशक से पहले की उस ख़ूबसूरती को जी भर कर जी रहे हैं जो लुप्तप्राय सी हो गई थी | जी हाँ, सही समझ रहे हैं आप | एक बार फिर, रात में छतों पर सोने की परंपरा पुनर्जीवित हो उठी है | पड़ोसियों को न सिर्फ़ पहचानने लगे हैं, बल्कि उनके साथ लंबी गप्पों के दौर का चलन फिर से जोरों पर है | 
ज़रूरी सेवाएँ देने के लिए घर से निकलने को मजबूर होने वाले कर्मचारी कार के शीशे बरसों बाद नीचे करके फिर से यात्रा करने के मज़े ले पा रहे हैं | परिवार के साथ वक़्त बिताने का नायाब मौक़ा हाथ लग गया है | भूले-बिसरे दोस्त बचपन, लड़कपन, जवानी सबके क़िस्से दोहराकर बीते समय को फिर से जी रहे हैं | और भी ऐसी ढेर सी ख़ूबसूरतियाँ हैं जिन्हें देखने का मौक़ा लॉकडाउन के सबब हमारा नसीब बना है | वही लॉकडाउन जो कोरोना ने करवाया है | इसलिए कोरोना का रोना न रो कर क्यों न ज़िंदगी के इस पड़ाव की ख़ूबसूरती को इस तरह से अपनी नज़रों के रास्ते रूह तक उतार लिया जाए कि आने वाली कई नस्लें उससे लुत्फ़-अंदोज़ होती रहें और कोरोना के डरावने नहीं बल्कि दिलफ़रेब पहलू का ज़िक्र कर अप्रत्यक्ष और अनकहे तौर पर इसका धन्यवाद करती रह सकें | पर उसके लिए ज़िंदा रहना पहली शर्त है | और ज़िंदा रहने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखने के दिशा-निर्देशों का पालन करना | ऐसी ही सलाह व अपील नक़्श के कैंपेन #करो न (dos), करो ना (donts) के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त सौंदर्य विशेषज्ञा डॉक्टर भारती तनेजा ने समाज से की है |
Thank you so much Dr. Bharti Taneja.


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