Tuesday, April 21, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts)

#करो न (dos), करो ना (donts)

साल का एक चौथाई हिस्सा एक बहुत बड़ा धमाका करके चुपके से खिसक लिया, पीछे बचे हुए महीनों को इस अधूरे काम को और बड़े हंगामे के साथ सर-अंजाम देने की ताकीद के साथ |  काम - कोरोना के नाम पर वह सब कुछ करते चले जाने का जो मानव इतिहास में अभूतपूर्व है | 
अभूतपूर्व ? हाँ, यही तो एक शब्द है, जो पिछले चार माह में इतनी बार, इतने संदर्भों में दोहराया गया है कि यह गणना भी अभूतपूर्व हो गई है | "नोवल कोरोना वायरस कोविड 19" नाम की आपदा अभूतपूर्व है क्योंकि इतिहास के पन्नों को खंगालने पर भी बड़ी से बड़ी आपदाएँ नज़र से गुज़रीं, पर यह पहली बार है, जब किसी बीमारी ने समूचे जगत को अपनी चपेट में ले लिया है | यह पहली बार है, जब किसी गाँव, शहर, राज्य, देश, उपमहाद्वीप या महाद्वीप के नहीं सारी दुनिया के लोगों की जान ख़तरे में है | यह पहली बार है, जब चंद हफ़्तों ने लाखों जीवन लील लिए हैं | यह भी पहली बार है कि संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है | और यह भी पहली बार ही है कि मरीज़ों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ नाकाफ़ी साबित हो रही हैं | है तो यह भी पहली ही बार कि करोड़ों किलोमीटर और प्रकाश वर्ष की दूरी तय कर चंद्रमा और मंगल तक पहुँच कर अपनी जीत का लोहा मनवाने वाले, सिर्फ़ एक साँस की दूरी पर मौजूद एक अनदेखे वायरस पर जीत हासिल करने में अब तक नाकाम हैं | और यह भी पहली ही बार है कि मौत के सामने जिंदगी इस तरह घुटने टेक रही है कि धरती पर भगवान का रूप माने जाने वाले डॉक्टर असमंजस में हैं कि सामने पड़े हुए मरीज़ों में से किसे बचाएँ तो किसे मर जाने दें | भारत जैसे देश में पहली बार में यह भी शामिल है कि ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले फ़ैसला नहीं ले पा रहे हैं कि उन्हें कोरोना के क़हर से मर जाना चाहिए या भूख के ग़ज़ब से ? उनके एक तरफ़ कुआँ तो दूसरी तरफ़ खाई है | बाहर निकलेंगे तो कोरोना का वायरस उनके नाक-मुँह से होता हुआ जिस्म में जा सकता है | घर में ही रहेंगे तो भूख का दानव उन्हें परिवार समेत निगल लेगा और उनके जिस्म को रूह से आज़ाद कर देगा | लोगों के संपर्क में आने पर कोरोना लगेगा ही ज़रूरी नहीं, पर दिन में तीन बार भूख तो ज़रूर ही लगेगी | और यह भूख ही शायद वह इकलौती चीज़ है जो इतने सारे अभूतपूर्वों में  एक बार फिर भूतपूर्व साबित हुई है | केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ग़ैर सरकारी संगठन या व्यक्ति विशेष जहाँ कहीं भी आर्थिक रूप से पिछड़े इस वर्ग की भूख का समाधान ले कर पहुँच रहे हैं, यह तबक़ा कोरोना को पीछे और पेट को सामने रख कर सड़कों पर निकलने को मजबूर हुआ दिखाई दे रहा है | एक वक़्त के खाने के लिए घंटों धूप में लाइन लगा कर ये ग़रीब लॉक-डाउन में भी उसी तरह ख़ून-पसीना बहा रहे हैं जैसे सामान्य दिनों में दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए बहाया करते थे | आज भी एक वक़्त के खाने के बाद दूसरे वक़्त के लिए उसी तरह फ़िक्रमंद हैं जैसे लॉक-डाउन से पहले हुआ करते थे | 

17अप्रैल 2020, दोपहर लगभग 12.00 बजे , पूर्वी दिल्ली |

मालूम इन्हें सब है कि कोरोना के कारण इस भयावह स्थिति के लिए निर्देशित dos & donts क्या हैं | पर यह कमबख़्त ग़रीबी.. इन्हें किन्हीं भी #करो न (dos), करो ना (donts) पर अमल करने से रोकती है |

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