Monday, May 25, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

आज ईद-उल-फ़ित्र है | वह त्यौहार जिसका इंतज़ार दो दर्जात पर रहता है | एक, किसी भी और त्यौहार की तरह साल भर लंबा इंतज़ार | और दूसरा एक माह के रोज़ों की पुरख़ुलूस इबादतों के कामयाब इख़्तिताम के ईनाम के तौर पर मिलने वाला ईद का त्यौहार | एक शाम पहले चाँद दिखने के साथ ही गहमागहमी का जो आलम बच्चों से बुज़ुर्गों तक हर इंसान में होता है, उसे अल्फ़ाज़ की ज़िंदां में जकड़ पाना, सोच के पिंजरे में कै़द कर पाना, कुछ नहीं बस नामुमकिन है| लेकिन इस साल इस ना-मुमकिन का 'ना' रोज़ेदारों से नाराज़ हो कर कहीं जा कर छिप बैठा है और ईद के शैदाइयों के लिए तक़रीबन साढ़े चौदह सौ बरस में उस मुमकिन के हवाले कर गया है, जिसकी न तो किसी को तमन्ना थी, न ख़्वाहिश, न अरमान और न ही तसव्वुर | इंसानी तारीख़ की ऐसी पहली ईद, जिसमें आबिदों के लिए मसाजिद के दरवाज़े बंद पाए गए| न नमाज़-ए-जुमा, न तरावीह, न आख़िरी अशरे में मस्जिद में एअतकाफ़, न जुमातुल-विदा और न ही नमाज़-ए-ईद | हालांकि अल्लाह के बंदों ने इबादतों की अदायगी ज़रूर की, पर इज्तिमाई तौर पर मसाजिद या ईदगाह में नहीं, बल्कि अपने-अपने घरों में | 
मजबूरी रही | कोरोना वायरस कोविड-19 की वबा जो बिन बुलाए सिर पर आ पड़ी है | जिसने ईद के तालिब हर ख़ास-ओ-आम को मजबूर कर दिया है कि तीन बार एक-दूसरे के गले मिलकर ईद मुबारक कहने वाले, हाथ भी न मिलाएँ | इस दिन नए कपड़े पहनना मुस्तहिब है, जानते हुए भी नए कपड़े-जूते ख़रीदने बाहर न जाएँ | ईद की सेवइयाँ, ख़ुद ही पकाएँ और ख़ुद ही खाएँ | जिन्हें लगानी आती हो, वे घर में ही मेंहदी से अपनी हथेलियाँ सजाएँ, वर्ना कोरी हथेलियों को देखें और मन मसोस कर रह जाएँ | पुरानी चूड़ियाँ, गहने ही नए समझ कर पहनें और दिल बहलाएँ | ख़ुद ही सजें, घर को सजाएँ और ख़ुद ही यह सब देख कर ख़ुश हो जाएँ क्योंकि मेहमान तो कोई आ नहीं सकता और आप ख़ुद किसी से मिलने कहीं जा नहीं सकते | और सबसे बढ़कर आज कोई ख़ास बटुआ/पर्स/वॉलेट न उठाएँ, घरवालों के अलावा और किसी से तो ईदी मिलने से रही, तो इस साल इस ख़ुशी को भी भूल जाएँ |
आह! क्या दर्द है? क्या कर्ब है? जो नाक़ाबिल-ए-बयान है | क्या यही वह ईद है जिस पर आम इंसान के शायर नज़ीर अकबराबादी ने पूरी एक नज़्म इस ख़ूबसूरती से लिख डाली थी कि वह आने वाली नस्लों के लिए दस्तावेज़ बन गई ? कहते हैं - 
"हो जी में अपने ईद की फ़रहत से शाद-काम |
ख़ूबाँ से अपने-अपने लिए सबने दिल के काम ||
दिल खोल-खोल सब मिले आपस में ख़ास-ओ-आम |
आग़ोश-ए-ख़ल्क़ गुल बदनों से भरे तमाम ||"

या फिर यह वह ई़़द है,  जिस पर हर दौर के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल का वह शेर याद आता है, जो उन्होंने ईद के लिए तो नहीं कहा था, पर जो 25 मई 2020 की ईद पर ऐन फ़िट बैठता है | फ़र्माते हैं - 
"ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में |
गोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है ||
होगा कोई ऐसा भी जो 'ग़ालिब' को न जाने |
शाइ'र तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है ||"

दर-हक़ीक़त मामला तो आजकल ये ही है कि हममें से हर एक अपने-अपने क़फ़स के अपने-अपने गोशे में दुबका बैठा है, इस डर से कि बाहर निकलने पर कहीं कोविड-19 न दबोच ले| मगर अल्लाह की बनाई इतनी बड़ी कायनात में ऐसे अक़ीदतमंदों की भी कोई कमी नहीं, जो न सिर्फ़ ख़ुद इस बात पर यक़ीन रखते हैं कि इंशाल्लाह जल्द ही सब ठीक होगा, बल्कि समाज की तरफ़ अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए पुरउम्मीद पैग़ाम भी देते हैं | 
आम इंसान की लाइफ़-लाइन बन कर तक़रीबन एक सदी से उनके हर सुख-दुख का साथी ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी के जाने-माने अनाउंसर, रेडियो जॉकी, न्यूज़ रीडर नक़्श की ख़ास दर्ख़्वास्त पर पूरे दिल से अपने दिल की बात लेकर नक़्श के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर ईद की मुबारकबाद और कोविड-19 के ताल्लुक़ से अपने तास्सुरात हम सब तक पहुँचाने में भी पीछे नहीं रहे | साथ ही मशहूर फ़िल्म अदाकार रज़ा मुराद की अपील ने भी इन रेडियो जॉकीज़ की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर आवाज़ की दुनिया को एक अनोखा अंदाज़ बख़्शा और पैग़ाम को ख़ासतरीन रुत्बा अता फ़र्माया | 

Thank you so much "Awaz-o-Andaz" i.e. voices of radio for a message regarding #Karo na, karo naa..

*Message in the video is given by - [Shabnam Khan, Radio Jockey, AIR FM Gold; 
Farhat Naaz, Hindi News Reader cum Translator, News Services Division of All India Radio; 
Aamir Azeem, Radio Jockey, AIR FM Gold;
Shabnam Khanam, Announcer cum Compere, External Services Division  of All India Radio; & 
Raza Murad, legendary Bollywood Actor].

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Tuesday, May 19, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future

#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future


#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future


कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन ने बचपन लौटा दिया है क़सम से | कल शाम भी कुछ पुराने दोस्तों के साथ वीडियो-कॉन्फ़्रेंसिंग कर ख़ूब धमाचौकड़ी की | तय यह हुआ कि आज सब दोस्त अपने-अपने बचपन की एक नादानी बाक़ी सबको सुनाएँगे | एक दोस्त ने शुरुआत की -
मैं उन दिनों शायद 6-7 साल की रही होंगी | अपनी नानी के साथ कहीं जा रही थी | चलते-चलते नानी के पैरों पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा उनकी चप्पल में रस्सी का एक लंबा सा टुकड़ा उलझ गया है जो नानी के साथ-साथ सड़क पर घिसटता हुआ आगे बढ़ रहा है | मैं अपनी नानी से बेहद प्यार करती थी | लिहाज़ा मुझे यह गवारा न हुआ कि रस्सी का वह गुस्ताख़ टुकड़ा मेरी नानी के पैरों का बंधन बने | कहीं यह नानी के पैरों में उलझ कर उन्हें गिरा न दे.. यह सोचते ही मेरा दिल धक से हो गया और नानी को गिरने से बचाने के लिए मैंने एक भी लम्हा और गँवाए बिना फ़ौरन रस्सी के उस दुष्ट टुकड़े पर अपना नन्हा पैर मज़बूती से रख दिया ताकि नानी के क़दम उस धूर्त की साज़िश से आज़ाद करा सकूँ | मगर यह क्या? इधर मेरा पैर उस टुकड़े पर पड़ा और उधर मेरी बुज़ुर्ग चहेती नानी मुँह के बल सड़क पर चारों ख़ाने चित्त | पास से गुज़र रहे राहगीरों ने लपक कर नानी को उठाया और पूछा कि कैसे गिर गईं ? नानी बेचारी कराहती हुई बोलीं - पता नहीं | पर मुझे तो पता था | नानी की तकलीफ़ देखकर मेरे आँसू निकल आए और मैंने रस्सी के टुकड़े की तरफ़ इशारा करके रोते-रोते ही चिल्लाकर कहा - यही है वह बदतमीज़, जिसने मेरी नानी को गिराया है | मुझे पता था यह ऐसा ही करेगा, इसीलिए मैंने इसको रोकने के लिए इस पर अपना पैर भी रखा | पर इसने फिर भी मेरी नानी को गिरा दिया | इतना कह, मैं दहाड़े मार कर रोने लगी | पर अचानक ही पास खड़ी भीड़ और दर्द से कराहती मेरी नानी सभी ठहाका मार कर हँस पड़े | उन सबकी हँसी की वजह उस दिन तो समझ में नहीं आई थी पर अब वह वजह बख़ूबी पता है | बस एक बात अब तक नहीं समझ पाई कि नानी को गिरने से बचाने की जुगत लगाने वाली, मैं उनसे ज़्यादा प्यार करती थी; या गिरकर चोट खाने के बावजूद मेरी नादानी को हँसी में उड़ा देने वाली नानी को मुझसे ज़्यादा प्यार था ?
दूसरे दोस्त ने बताया -
मेरी उम्र उन दिनों शायद 4-5 साल रही होगी और मेरी बहन की 6-7 साल | हमारा घर तीसरी मंज़िल पर था | हम दोनों के हाथ में, याद नहीं क्या चीज़ थी, जो हमें मम्मी को दिखानी थी | होड़ यह थी कि कौन पहले दिखाए? बहन बड़ी थीं | इसलिए वह मुझसे ज़यादा स्पीड में सीढ़ियाँ चढ़ कर मुझसे आगे निकली जा रही थीं, जबकि उनसे पहले मैं मम्मी के पास पहुँचना चाहता था | जब आख़िरी ज़ीने पर भी वह मुझसे आगे ही दिखीं तो अपनी नादान नन्ही अक़्ल का इस्तेमाल कर मैंने उनकी टाँग पकड़ कर उन्हें रोकना चाहा ताकि मैं उनसे आगे निकलकर मम्मी के पास पहले पहुँच सकूँ | मगर इधर मैंने टाँग पकड़ी और उधर कानों को चीरती हुई बहन की चीख़ मेरा दिल दहला गई | मैंने टाँग छोड़ बहन के चेहरे की तरफ़ देखा तो होश फ़ाख़ता हो गए | बहन का चेहरा ख़ून में लथपथ था और वह आसमान सिर पर उठाए बेतहाशा रो रही थीं | इतने में रोने की आवाज़ सुनकर मम्मी भी वहाँ पहुँच गईं | आनन-फ़ानन में बहन को डॉक्टर के पास ले जाया गया, जिन्होंने बताया कि मैंने जो उनकी टाँग पकड़ कर खींची उससे उनका मुँह इस ज़ोर से सीढ़ी से टकराया कि ऊपर वाला एक दाँत शहीद हो गया | वैसे तो उनके दूध के दाँत टूटकर पक्के दाँत निकलने का दौर चल रहा था और ऊपर की तरफ़ का एक दूध का दाँत पहले ही टूट कर पक्का दाँत निकलने के इंतज़ार में था | पर मेरी नादानी से बहन का जो दाँत टूटा वह दूध का नहीं, पक्का दाँत था | अब तो सारे घर पर फ़िक्र के बादल छा गए | लड़की को सारी ज़िंदगी पोपले मुँह के साथ जीना होगा | कितना अजीब लगेगा | चाँद सा चेहरा, पर बिना दाँत | और भी न जाने क्या-क्या? बहरहाल दाँतों के डॉक्टर ने ही तसल्ली दी कि इंतज़ार करो | यूँ तो तीसरी बार दाँत निकलता नहीं है | पर कौन जाने क़ुदरत कोई करिश्मा ही दिखा दे | और वाक़ई करिश्मा हुआ भी | पर वह नहीं जो आप सब समझ रहे हैं, बल्कि यह कि टूटने वाला एक दूध का और एक पक्का दाँत, जो कि एक दूसरे के पड़ोसी थे, उन दोनों की ख़ाली जगह को पुर करता हुआ बीचों-बीच एक अकेला दाँत कुछ इस तरह बहन के मुँह में उगा कि आकार में ज़रा सा चौड़ा था, पर इतना भी नहीं कि देखने में अखरे | और दोनों तरफ़ के पड़ोसी दाँतों से ज़रा-ज़रा सी दूरी पर था, पर वह दूरी भी इतनी नहीं कि देखने में बुरी लगे | यूँ कुल मिलाकर क़ुदरत ने बड़े ही संतुलन के साथ बहन के चेहरे की ख़ूबसूरती बिगड़ने से बचा ली | आज मेरी बहन भी दो बच्चों की माँ हैं और मैं भी अब दो बच्चों का बाप हो गया हूँ | मगर जब भी इस वाक़ये का ज़िक्र छिड़ता है मेरी बहन यह कहने से नहीं चूकती हैं कि सिर्फ़ मेरी वजह से वह कभी पूरे 32 दाँत की मालिक नहीं बन पाईं | लेकिन मैं आजकल यह सोचता हूँ कि कोविड-19 के इस युग में सिर्फ़ मेरी वजह से ही बहन ख़ुद ही नहीं, उनके दाँत भी सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन किए हुए हैं |
एक और दोस्त ने अपने बचपन का क़िस्सा साझा किया -
मैं क़रीब 6-7 या 8 साल की रही होंगी | घर के दरवाज़े के बाहर वाली दीवार में काफ़ी नीचे की तरफ़ एक गहरी दरार हो गई थी, जिसे भरने पर न हमारे घरवालों ने कोई ध्यान दिया और न ही पड़ोसियों ने | पर हम दोनों घरों के ही बच्चों के लिए वह दरार उत्सुकता और कौतूहल का विषय बन गई | हम सभी उस दरार के अंदर झाँक-झाँक कर मानो अपना खोया ख़ज़ाना ढूँढते रहते थे | एक दिन स्कूल से वापिस आकर घर में घुसती, उससे पहले ही एक बार फिर उस दरार ने मुझे अपनी तरफ़ आकर्षित किया | मैंने उसमें पूरी शिद्दत से झाँका और मैं हैरान रह गई | आज सचमुच उस दरार के अंदर दो ख़ूबसूरत, चमकते हुए मोती दिखाई दिए | मैंने वक़्त ज़ाया न करते हुए फ़ौरन अपनी पतली सी कमज़ोर उंगली दरार में डाल दी ताकि दोनों मोती हासिल कर सकूँ | पर मोती दूर थे और उंगली छोटी | इतने में ही घर का दरवाज़ा खुला और मैंने घबराकर उंगली बाहर निकाल ली | उस वक़्त तो मैं अंदर चली गई, पर उन दो मोतियों का मोह मुझे बार-बार उस दरार तक खींच कर लाता रहा | लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हर बार ही मैं मोती हासिल करने में नाकाम होती | बताती किसी को नहीं थी कि कहीं मुझे अपने मोती किसी के साथ बाँटने न पड़ जाएँ | एक दिन फिर से सबकी आँख बचाकर मैं मोती-निकाल मिशन में जुटी हुई थी कि पीछे से मम्मी आ गईं | मुझे दरार में कभी उंगली तो कभी झाड़ू के तिनके से कुछ निकालने की कोशिश करते देख पूछ लिया कि मैं क्या कर रही हूँ | रंगे हाथों पकड़ी जाने पर झूठ न बोल सकी | बता दिया कि इस दरार में मेरे दो मोती हैं, वही निकाल रही हूँ | मम्मी हैरान हुईं कि इतनी बारीक सी दरार के अंदर मोती गए कैसे? बोलीं, हट तो ज़रा | मैं भी तो देखूँ | पहले तो काफ़ी देर उन्हें मेरे मोती दिखे नहीं | फिर मेरे बताए अनुसार आख़िरकार जब उनकी नज़र दोनों मोतियों पर पड़ी तो चिल्लाकर मुझे डाँटते हुए बोलीं - चल अंदर | ख़बरदार जो फिर कभी इस दरार के पास फटकी | मरने के काम कर रही है ? मोती नहीं, वे छिपकली के अंडे हैं | वह तो अच्छा है कि छिपकली ने काटा नहीं तेरे | वर्ना हमें तो पता भी न चलता कि क्या हुआ | फिर बिना देरी दरार को सीमेंट से भरकर बंद कर दिया गया | लेकिन कई साल मैंने इस ग़म में गुज़ार दिए कि मम्मी की वजह से मुझे अपने जादुई मोतियों से हाथ धोना पड़ा | जब तक विज्ञान की किताबों में ख़ुद नहीं पढ़ लिया कि छिपकली अंडे देती है और ये अंडे ख़ूबसूरत मोती जैसे दिखते हैं, तब तक मम्मी मेरी क़ुसूरवार ही रहीं |
एक और दोस्त बोला - 
मैं अपनी नहीं, अपने पापा के बचपन की शरारत बताता हूँ जो मैंने पापा से, दादा-दादी से और कई बड़ों से अनेक बार सुनी है और हर बार उसका बड़ा ही लुत्फ़ लिया है | मेरे पापा बचपन में बेहद शरारती थे | शरारतों का आलम यह था कि पूरा इलाक़ा उन्हें नाम से जानता था | जिधर से गुज़रते कोई शरारत ज़रूर करते | यह वाक़या शायद 50 के दशक का होगा | पापा तब 8-10 साल के रहे होंगे | वे पुरानी दिल्ली के बाड़ा हिन्दू राव में रहते थे | उन दिनों उस इलाक़े में भेड़-बकरियाँ बहुत घूमती थीं | एक दिन शरारत में एक भेड़ की पीठ पर चढ़ बैठे | पापा की तरह भेड़ का भी अपनी तरह का यह पहला अनुभव था | भेड़ एकदम घबरा गई और बौखलाहट में उसने जिधर जगह देखी, दौड़ लगा दी | अब घबराने की बारी पापा की थी | भले ही शरारती थे, पर थे तो बच्चे ही | कहीं भेड़ अपनी पीठ पर से गिरा न दे, इस डर से उन्होंने भेड़ के बालों को मज़बूती से अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया | अब भेड़ और ज़्यादा घबराई, और पहले से ज़्यादा तेज़ दौड़ने लगी | उसकी तेज़ दौड़ से डरकर पापा ने और जो़र से उसके बाल पकड़े | इससे भेड़ और तेज़ी से दौड़ी | और डर का यह सिलसिला पापा और भेड़ दोनों में स्पीड पकड़ता चला गया | इधर भेड़ और पापा की जान पर बनी थी और उधर सड़क पर मौजूद लोग तमाशबीन बन मज़े ले रहे थे | बिदकी हुई भेड़ की पीठ पर पापा की सहमी हुई सवारी ने बग़ीची अच्छा जी से ईश्लरी प्रसाद तक के कई राउंड लगाए | सड़क के दोनों किनारे खड़े लोग इस नायाब मंज़र को देख हँस-हँसकर लोटपोट होते रहे, पर किसी को यह ख़्याल न आया कि इस तमाशे को रोका जाए | आख़िरकार कुछ पापा ने हिम्मत दिखाई और कुछ भेड़ भी थक-थका गई, तब कहीं पापा और भेड़ का मैराथन पूरा हुआ | भेड़ का तो पता नहीं, उसके बाद क्या हुआ? पर पापा कभी नहीं बदले | कम उम्र में यह दुनिया छोड़ गए थे | मगर उनकी शरारतें कभी कम नहीं हुईं | उन जैसा शरारती न हममें से कोई है, न ही हमने कहीं और देखा | बचपन को उन्होंने आख़िरी साँस तक जिया और भरपूर जिया |
बाक़ी दोस्तों ने भी अपने-अपने बचपन की कारस्तानियाँ बयान कीं | किसी और पोस्ट में इसी प्लेटफ़ॉर्म पर वे यब भी ज़रूर आपसे साझा की जाएँगी | लेकिन इस पोस्ट को पढ़कर आपको भी अपने बचपन का कोई कारनामा याद आ गया हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखिएगा | फ़िलहाल तो मेरे ज़हन में यह चल रहा है कि अब से 10-20 बरस बाद अगर हमारी ही तरह दोस्तों के किसी ग्रुप ने इकट्ठा होकर अपने बचपन के क़िस्से दोहराए तो सारी दुनिया के दोस्तों के पास एक क़िस्सा कॉमन होगा | कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन का क़िस्सा, जिसे आज दुनिया के हर कोने में हर बच्चा झेलने को मजबूर है | छिनते बचपन की इसी मजबूरी ने शायद इन मासूम बच्चों को इतना समझदार बना दिया है कि हालात की नज़ाकत को समझते हुए ये हम बड़ों से भी सावधानियाँ बरतने की अपील कर रहे हैं | अब यह हमारा फ़र्ज़ है कि इनकी अपील पर अमल करके इन्हें एक सुरक्षित दुनिया दें |
Thank you dear children for your message through #Karo na, karo naa.. Love you all. 

*Kids in the video - [Ahmad Jamil, Haniya Hasan, Amish Riaz, Ayesha Parvez, Krisha, Maryam Jamil, Aayat Ali, Arham Ali, Arka Rai, Arsh Parvez & Barirah Hasan].

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Friday, May 15, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity

#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity


#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity

Hazrat Shaikh Shams-Al-Deen Muhammad known as Hazrat Shams Tabrezi (R) [Spiritual Master of Hazrat Maulana Jalal Al Deen Rumi (R)] says -
"There are more fake gurus and false teachers in this world than the number of stars in the visible universe. Don't confuse power-driven, self-centered people with true mentors. A genuine spiritual master will not direct your attention to himself/herself and will not expect absolute obedience or utter admiration from you, but instead will help you to appreciate and admire your inner self. True mentors are as transparent as glass. They let the light of Almighty  pass through them".
शास्त्रों में भी कहा गया है -
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः" ||
इन दो मिसालों से दो चीज़ें साफ़ तौर पर सामने आती हैं | एक - उस्ताद का दर्जा बहरहाल हर किसी से ऊपर है | और दूसरी - दिखावे, मिलावट और धोखे की दुनिया में शिक्षक का विशुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है | गुरु ही तो है जो आदमी को इंसान बनाकर मानवता का सुनहरा भविष्य निर्मित करता है | जबकि दूसरी तरफ़ गुरु के रूप में छलने वाला बहुरूपिया इसी भविष्य को ग्रहण लगाकर मानवता को तार-तार करने में अहम भूमिका अदा करता है | इनमें भी छोटे बच्चों के उस्ताद / उस्तानियों के कंधों पर ज़्यादा ज़िम्मेदारी होती है |
Because a child's mind is, at its best impressionable, like wet clay waiting to be moulded into shapes - good, bad or ugly. According to Benjamin Spock - "85% of the child's mind is developed by the age of five". So these formative years of a human being is utmost crucial. It is vital that what a child is exposed should be healthy and positive. In the global village today, there are streams of messages floating around; generated by love, hatred, concern, selfishness etc. But a person carries forward with oneself what s/he has learnt in the kindergarten. Eg. "share everything, play fair, don't hit people, put things back where you found them, clear up your mess, don't take things that are not yours, when you go out into the world watch out for traffic, hold hands, stick together and blah blah! ". And now in Corona era even some more  messages have joined their predecessors.
 जैसे "मास्क लगाएँ, घर में ही रहें, साबुन और पानी से बारंबार हाथ धोते रहें, अपने आँख, नाक, मुँह को बार-बार न छुएँ, खाँसी-नज़ला होने पर फ़ौरन डॉक्टर से राबता क़ायम करें, भीड़ इकट्ठी न करें वग़ैरह-वग़ैरह |" हालाँकि समाज का हर ज़िम्मेदार इंसान इसका ख़ूब प्रचार-प्रसार कर रहा है, मगर बच्चों के ज़हन पर जो असर उनके अध्यापक की कही बात करती है, वो असर तो बड़े से बड़े और ताक़तवर बादशाह की भी नहीं कर सकती | इसीलिए स्कूल की चारदीवारी और आॉन-लाइन क्लासेज़ के नेटवर्क से बाहर भी समाज के कुछ ज़िम्मेदार शिक्षकों ने एक सराहनीय क़दम उठाते हुए नक़्श के जागरुकता कार्यक्रम #करो न (dos), करो ना (donts) के ज़रिए नन्हें नौनिहालों को ज़रूरी संदेश देकर अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया |

Thank you educational fraternity for your message.

*Teachers in the video - [Mrs. Aruna Shivraj, Principal Himalaya Public School; Mrs. Mamta Sharma; Mrs. Rama Sharma; Mr. Sharib Jameel; Mrs. Shreya].

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Friday, May 8, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Rashida Baqi Haya

#करो न (dos), करो ना (donts) - Rashida Baqi Haya

Rashida Baqi Haya  : Urdu Poet, Writer, Social Worker


Coronavirus Covid-19 ki wajah se jis tarah se sari duniya ki economy charmara gayi hai, aisi haalat shayad hi itne bade paimane par is se pehle kabhi huyi ho. Economy ke hawale se likhit dastavez ki baat karein to be_sakhta America ki mash_hoor bi-weekly business magazine "Forbes" ka naam zehan mein ata hai. Forbes finance, industry, investing aur marketing ke alawa technology, communication, science, politics aur law jaise topics par bhi original articles publish karti hai. Finance aur economy par apni qabil-e-yaqeen lists aur rankings shaya karne ke liye bhi ye magazine jani jati hai. Sabse ameer Americans, top alami companies, sabse taqatwar khawateen ya duniya ke sabse raees yani millionaires/billionaires ki list aur ranking in mein kafi aham hai. 
Isi Forbes magazine ke guzishta edition mein ek report chhapi thi ki Covid-19 kee wajah se sara alam jis lockdown kee qaid se guzar raha hai, usne economy par aisa bura asar dala hai ki duniya ke 51% ameeron ki daulat kam huyi hai. Sath hi is lockdown ne poori duniya se 226 arabpati kam kar diye hain. Padhte hi ek jhatka lagta hai kyonki zahiri taur par ye badi hi tashweesh_naak baat nazar ati hai ki agar sarmayadaar na rahe, paisa hi khatm ho gaya to duniya chalegi kaise? Magar ek lamhe ke liye ankhein band karke dayanatdari se socha jaye to yaqeen maniye ye itne fikr ki bhi baat nahin.
Safah-e-duniya se agar ameer, raees, seth, sahukar, sarmayadaar, jagirdaar, industrialists, bankers, science-daan, siyasat-daan, shayar, adeeb, anchors, artists, architect, afsana-nigar sab ke sab khatm ho jayein to duniya qatayi nahin rukegi. Yun hi chalti rahegi. Lekin agar iske bar-aks Covid-19 ya kisi bhi waba ke sabab raton-raat safayi karne wale, kuda uthane wale, baal kaatne wale, roti pakane wale, juta ganthne wale, kapde dhone wale, khana pakane wale, imaratein banane wale, mazduri karne wale, bijli-pani ka kaam karne wale, gadi chalane wale, gharelu mulazim, doctors aur kisan khatm ho jayein to duniya 10-15 din ke andar-andar puri tarah se seize ho jayegi. Kisan zinda rahein, zindagi rawan rahegi. Jagirdaar sare maujood rahein, kisan khatm ho jayein to qahat pad jayenge. Insan-insan ko kha jayega. To aham kaun hua? Ghareeb ya ghareeb ki wajah se be-shumar paisa kamane wala ameer?
Shayad ye hi wo pal hai jab is lockdown se hamein seekhna hoga ki aaj waqt hai unhein respect dene ka jinhein hum is qabil nahin samajhte. Jinki sadiyon se be-izzati hoti ayi hai, bhookh jinki khuraak hai, faqa jinka naseeb hai, wo kal bhi aise hi the, aaj bhi aise hi hain. Izzat kam huyi hai un millionaires/billionaires ki jinki izzat, jinki pehchan paise tha aur paise hi hai. Aaj wo bhi paisa ganwa kar in ghareebon ki saf mein khade dikh rahe hain. Kahin ye in ghareebon ki sadiyon ki bad_dua ka asar to nahin? Ho sake to ab bhi in ghareebon ko barabari ka darja de kar paise wale nahin balki asal daulatmand ban jayein. Aaj kisi ki 2 waqt ki roti ka intzam kar paise ke bajay thodi si dua kama lein. Warna kisi aur bad_dua ke evaz ek aur lockdown, ek aur economic breakdown ka intzar karein.
Zaruratmandon ki madad ka ye hi jazba, ye hi fikr Hindostan ki mash_hoor-o-ma'roof shayra aur social worker Rashida Baqi Haya ke dil mein bhi hai. Jise unhone Naqsh ke campaign #karo na (dos), karo naa (donts).. ki maarfat samaj tak pohanchaya hai.

Thank you Rashida Baqi Haya Sahiba.


*Rashida Baqi Haya - [Rashida Baqi Haya is a famous Urdu poet, writer and social worker of national repute. She belongs to a royal Pathan family of Rampur, Uttar Pradesh. Her father Maulana Abdul Baqi was a freedom fighter, a well known journalist of his time and worked as the Chief Political Advisor of two Prime Ministers of India i.e. Pandit Jawaharlal Nehru & Mrs. Indira Gandhi.  Her father left for his heavenly abode when she was merely four years old.  Her mother Shahida Baqi Nikhat was a famous poet of persian and Urdu. Rashida Baqi Haya did her schooling from Frank Anthony public School & Cambridge Boarding School, Dehradun. She participated in her inaugural mushaira at the age of just 13. And since then her journey is still continued].


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Monday, May 4, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Neeleshwari Basak

#करो न (dos), करो ना (donts) - Neeleshwari Basak

Neeleshwari Basak : Personality Grooming Guru #करो न, करो ना.. 

May 4, 2020..
i.e. Day 40 of lockdown..
or 1st day of lockdown 3.0. All about little hopes & lots of expectations, desperations, efforts and prayers. 
In an unprecedented situation, currently every country on the globe is in battlefield, indulged in the battle against coronavirus in its own way. Epidemiologists are churning out computer models of how the infection will spread and how many people will get affected. Scientists are struggling to understand the nature of the virus. Druggists are involved in finding a vaccine or drug of the epidemic. Countries are looking at which model to follow to minimise deaths and economic disruption. Health workers are on their toes to save maximum lives. Police personnels are on badly tiring duty to serve the humanity tirelessly. Journalists are busy in making public informed with the latest information. Stranded migrants are wondering when this long exile will get over and they will unite with their families again. Employees are losing their jobs and employers are worried for their own bread & butter. In nutshell, this is an acid test of every country. And for India, this is even more. We are 1.3 billion people. We are the second most populous country in the world. We are the 31st most densely populated nation with 420 persons per square kilometere. We are unique for several reasons. We are poor and CoronaCrisis has left us even more poor. Right now we are sitting on the mouth of a volcano which may explode any moment. But together we can overcome from this horrible situation. Yes, we are 2nd most populous country with 1.3 million brains to think better ideas & 2.6 million hands to support each other. We are poor by money. But we are very rich with a heart of gold. We are densely populated with 420 persons per kilometere. But this is where our strength lives. This is the pseronality of an average Indian groomed by our parents, teachers & well wishers. And this is the spirit which inspired us to have a message from "Personality Grooming Guru - Ms. Neeleshwari Basak" about the pandemic and lockdown through #karo na (dos), karo naa (donts).. 

Thank you Neeleshwari Basak ji. 


*Neeleshwari Basak - [Neeleshwari Basak is the
•Founder-Director Worldwide Institute of Grooming & Pageants.
•Honored with  prestigious " Make in India" Awards.
•Mrs Exquisite International Queen FRu 2015.
•Lifestyle Expert and Beauty Wellness Grooming Guru
•Internationally certified Life Coach & Make up Master
•Corporate Trainer for Senior Management & Doctors of multinational companies
•Model/Film Actor - Producer]

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