#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |
#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |
आज ईद-उल-फ़ित्र है | वह त्यौहार जिसका इंतज़ार दो दर्जात पर रहता है | एक, किसी भी और त्यौहार की तरह साल भर लंबा इंतज़ार | और दूसरा एक माह के रोज़ों की पुरख़ुलूस इबादतों के कामयाब इख़्तिताम के ईनाम के तौर पर मिलने वाला ईद का त्यौहार | एक शाम पहले चाँद दिखने के साथ ही गहमागहमी का जो आलम बच्चों से बुज़ुर्गों तक हर इंसान में होता है, उसे अल्फ़ाज़ की ज़िंदां में जकड़ पाना, सोच के पिंजरे में कै़द कर पाना, कुछ नहीं बस नामुमकिन है| लेकिन इस साल इस ना-मुमकिन का 'ना' रोज़ेदारों से नाराज़ हो कर कहीं जा कर छिप बैठा है और ईद के शैदाइयों के लिए तक़रीबन साढ़े चौदह सौ बरस में उस मुमकिन के हवाले कर गया है, जिसकी न तो किसी को तमन्ना थी, न ख़्वाहिश, न अरमान और न ही तसव्वुर | इंसानी तारीख़ की ऐसी पहली ईद, जिसमें आबिदों के लिए मसाजिद के दरवाज़े बंद पाए गए| न नमाज़-ए-जुमा, न तरावीह, न आख़िरी अशरे में मस्जिद में एअतकाफ़, न जुमातुल-विदा और न ही नमाज़-ए-ईद | हालांकि अल्लाह के बंदों ने इबादतों की अदायगी ज़रूर की, पर इज्तिमाई तौर पर मसाजिद या ईदगाह में नहीं, बल्कि अपने-अपने घरों में |
मजबूरी रही | कोरोना वायरस कोविड-19 की वबा जो बिन बुलाए सिर पर आ पड़ी है | जिसने ईद के तालिब हर ख़ास-ओ-आम को मजबूर कर दिया है कि तीन बार एक-दूसरे के गले मिलकर ईद मुबारक कहने वाले, हाथ भी न मिलाएँ | इस दिन नए कपड़े पहनना मुस्तहिब है, जानते हुए भी नए कपड़े-जूते ख़रीदने बाहर न जाएँ | ईद की सेवइयाँ, ख़ुद ही पकाएँ और ख़ुद ही खाएँ | जिन्हें लगानी आती हो, वे घर में ही मेंहदी से अपनी हथेलियाँ सजाएँ, वर्ना कोरी हथेलियों को देखें और मन मसोस कर रह जाएँ | पुरानी चूड़ियाँ, गहने ही नए समझ कर पहनें और दिल बहलाएँ | ख़ुद ही सजें, घर को सजाएँ और ख़ुद ही यह सब देख कर ख़ुश हो जाएँ क्योंकि मेहमान तो कोई आ नहीं सकता और आप ख़ुद किसी से मिलने कहीं जा नहीं सकते | और सबसे बढ़कर आज कोई ख़ास बटुआ/पर्स/वॉलेट न उठाएँ, घरवालों के अलावा और किसी से तो ईदी मिलने से रही, तो इस साल इस ख़ुशी को भी भूल जाएँ |
आह! क्या दर्द है? क्या कर्ब है? जो नाक़ाबिल-ए-बयान है | क्या यही वह ईद है जिस पर आम इंसान के शायर नज़ीर अकबराबादी ने पूरी एक नज़्म इस ख़ूबसूरती से लिख डाली थी कि वह आने वाली नस्लों के लिए दस्तावेज़ बन गई ? कहते हैं -
"हो जी में अपने ईद की फ़रहत से शाद-काम |
ख़ूबाँ से अपने-अपने लिए सबने दिल के काम ||
दिल खोल-खोल सब मिले आपस में ख़ास-ओ-आम |
आग़ोश-ए-ख़ल्क़ गुल बदनों से भरे तमाम ||"
या फिर यह वह ई़़द है, जिस पर हर दौर के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल का वह शेर याद आता है, जो उन्होंने ईद के लिए तो नहीं कहा था, पर जो 25 मई 2020 की ईद पर ऐन फ़िट बैठता है | फ़र्माते हैं -
"ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में |
गोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है ||
होगा कोई ऐसा भी जो 'ग़ालिब' को न जाने |
शाइ'र तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है ||"
दर-हक़ीक़त मामला तो आजकल ये ही है कि हममें से हर एक अपने-अपने क़फ़स के अपने-अपने गोशे में दुबका बैठा है, इस डर से कि बाहर निकलने पर कहीं कोविड-19 न दबोच ले| मगर अल्लाह की बनाई इतनी बड़ी कायनात में ऐसे अक़ीदतमंदों की भी कोई कमी नहीं, जो न सिर्फ़ ख़ुद इस बात पर यक़ीन रखते हैं कि इंशाल्लाह जल्द ही सब ठीक होगा, बल्कि समाज की तरफ़ अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए पुरउम्मीद पैग़ाम भी देते हैं |
आम इंसान की लाइफ़-लाइन बन कर तक़रीबन एक सदी से उनके हर सुख-दुख का साथी ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी के जाने-माने अनाउंसर, रेडियो जॉकी, न्यूज़ रीडर नक़्श की ख़ास दर्ख़्वास्त पर पूरे दिल से अपने दिल की बात लेकर नक़्श के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर ईद की मुबारकबाद और कोविड-19 के ताल्लुक़ से अपने तास्सुरात हम सब तक पहुँचाने में भी पीछे नहीं रहे | साथ ही मशहूर फ़िल्म अदाकार रज़ा मुराद की अपील ने भी इन रेडियो जॉकीज़ की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर आवाज़ की दुनिया को एक अनोखा अंदाज़ बख़्शा और पैग़ाम को ख़ासतरीन रुत्बा अता फ़र्माया |
Thank you so much "Awaz-o-Andaz" i.e. voices of radio for a message regarding #Karo na, karo naa..
*Message in the video is given by - [Shabnam Khan, Radio Jockey, AIR FM Gold;
Farhat Naaz, Hindi News Reader cum Translator, News Services Division of All India Radio;
Aamir Azeem, Radio Jockey, AIR FM Gold;
Shabnam Khanam, Announcer cum Compere, External Services Division of All India Radio; &
Raza Murad, legendary Bollywood Actor].
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