Monday, January 6, 2020

ब्रेल ! तुम कब आओगे ?


ब्रेल ! तुम कब आओगे ?

लुई ब्रेल.. जिनका जन्म  4 जनवरी, 1809 को फ्रांस की राजधानी पेरिस से 40 किमी दूर कूपर गांव में और निधन 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में हुआ, दृष्टिबाधितों की अंधेरी दुनिया में ब्रेल लिपि नामक ऐसी रोशनी बिखेर गए जिसके लिए दुनिया सदा उनकी आभारी रहेगी | 
चार भाई-बहनों में सबसे छोटे लुई ब्रेल की आंख खेल-खेल में जख्मी हो गयी, जिससे एक आंख की रोशनी हमेशा के लिए जाती रही | फिर उस आंख में हुए संक्रमण की वजह से कुछ दिनों बाद उन्हें दूसरी आंख से भी दिखना बंद हो गया और यूँ लुई पूरी तरह दृष्टिहीन हो गये | बचपन के शुरूआती सात साल ऐसे ही गुजरे | जब 10 साल के हुए, तो पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन में भर्ती करा दिया | लुई ब्रेल ने यहां इतिहास, भूगोल और गणित की पढ़ाई की | पर उस स्कूल में जिस लिपि से पढ़ाई होती थी वह लिपि अधूरी थी | एक दिन फ्रांसीसी सेना के एक कैप्टन एक प्रशिक्षण के सिलसिले में लुई के स्कूल आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग या सोनोग्राफी लिपि के बारे में बताया | यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनायी जाती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों में रखा जाता था | लेकिन इसमें संख्‍या, विराम चिह्न, गणितीय चिह्न आदि का अभाव था | प्रखर बुद्धि लुई ने इसी लिपि के आधार पर 12 के बजाय केवल 6 बिंदुओं का इस्तेमाल कर 64 अक्षर और चिह्न बनाये जिसमें विराम चिह्न व गणितीय चिह्न के अलावा संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे | लुई ने जब यह लिपि बनायी तब उनकी उम्र महज़ 15 बरस थी | बाद में लुई ब्रेल उसी स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए | गणित, भूगोल, व्याकरण जैसे विषयों में उन्हें महारत हासिल थी | लुई उत्कृष्ट पियानोवादक भी थे | 1824 में लुई ब्रेल की बनाई यह लिपि "ब्रेल लिपि" कहलाई जो आज दुनिया के लगभग सभी देशों में इस्तेमाल की जाती है | उनकी मृत्यु के 16 साल बाद सन 1868 में रॉयल इंस्टिट्‍यूट फॉर ब्लाइंड यूथ ने इस लिपि को मान्यता दी | उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर सन 1952 में दुनियाभर के अखबारों में उन पर लेख छपे, डाक टिकट जारी हुए और उनके घर को संग्रहालय का दर्जा दिया गया |  इस‍ लिपि में पाठ्‍युपस्तकें, पुस्तकें और ग्रंथ तो छपते ही हैं, टैक्टाइल मानचित्र, रेखाचित्र भी उपलब्ध हैं और अब तो समय जानने के लिए ब्रेल घड़ियाँ भी बन गई हैं | 

(लुई ब्रेल की द्विशताब्दी जयंती पर जारी एक सिक्का)

हमारे देश में भी ब्रेल लिपि मान्यता प्राप्त है जो दृष्टिबाधितों के लिए अच्छी खबर है | अब इंतज़ार है तो बस उस अच्छी ख़बर का, जो 6x6 रोशनी वाले दृष्टिहीनों की ज़िंदगी में भी रोशनी का संचार कर सके | फिर से एक ऐसे लुई ब्रेल के आगमन का, जो नफ़रत व साम्प्रदायिकता के अंधेरों में घिरे असामाजिक तत्वों के लिए एक नई ब्रेल लिपि विकसित करें ताकि इन जैसे प्राणियों को एक सभ्य और प्रेममय समाज में जीने के लिए प्रेरणा और मदद मिल सके | जो देख नहीं सकते उनके लिए तो ब्रेल लिपि विकसित कर दी, पर जो देखने की क्षमता रखते हुए भी देख नहीं पा रहे हैं, उनके उत्थान के लिए एक नई ब्रेल लिपि लेकर  "लुई ब्रेल! तुम कब आओगे?" |

A Homage to Louis Braille

--------@---------------@-------------@----------@---------

**To know NAQSH more, connect with us on social media. 
Subscribe our YouTube channel - https://www.youtube.com/channel/UCfDraAV_yCrphpKlRNbCZ9Q

Like our facebook page - https://www.facebook.com/naqsh.naqsh.73/

Follow us on twitter - https://twitter.com/Naqsh17?s=08

Write on our blog - https://draft.blogger.com/u/1/blogger.g?blogID=304274514506471721#allposts/postNum=0

Visit our website - www.naqsh.org.in

No comments:

Post a Comment