Friday, November 6, 2020

#करो_न_करो_ना (dos & donts) - Parikul Bhardwaj

 #करो_न_करो_ना (dos & donts) - Parikul Bhardwaj


 #करो_न_करो_ना (dos & donts) - Parikul Bhardwaj

घर से निकलने को दरवाज़ा खोला ही था कि सामने से तीन साल के भतीजे ने अपनी टॉय पिस्टल तानते हुए बड़े स्टाइल में कहा - "हैंडसम"| मैंने हैंडसअप को हैंडसम पहली बार बनते देखा था| इसलिए भतीजे की मासूमियत पर मुझे बेसाख़्ता प्यार आ गया| मैंने पूछा - क्या चाहिए आपको? वो बोला - कितने दिन हो गए | कोई मुझे बाहर नहीं ले जाता| मुझे "वलीना आइसक्रीम" खानी है| इस बार मेरी हँसी छूट गई| बेचारी आइसक्रीम का फ़्लेवर ही बदल डाला| मैंने हँसते हुए वादा किया - आपकी वनीला.. सॉरी वलीना आइसक्रीम आपको शाम को घर पर ही मिल जाएगी, उसके लिए बाहर जाने की क्या ज़रूरत? बाहर बच्चों को डराने के लिए गंदे वाले कोविड अंकल बैठे हैं न, इसलिए बच्चे आजकल बाहर नहीं जा रहे हैं| मासूम बच्चा मेरी बात मान गया और मैंने अपनी राह ली|

बाहर निकलते ही एक रिक्शावाला दिखा| मैंने पूछा - कॉलोनी चलोगे? बोला - नहीं जी| वहाँ कुछ दिन पहले "लिमंट्री" लगी थी, वहाँ नहीं जाएँगे| मैंने अचरज से पूछा - लिमंट्री मतलब? बोला - बोर्ड लगा था न, कोई अंदर नहीं जा सकता| मैंने कहा - ओह! नो एंट्री| बोला - हाँ, हाँ, वो ही| मैंने कहा - पर वो तो लॉकडाउन की बात है, तब कॉलोनी कंटेनमेंट ज़ोन में थी| अब सब ठीक है| वह बोला - न, न| हम तब भी नहीं जाएँगे| आपके लिए इतना कर सकते हैं कि कॉलोनी से पहले जो "फ़ावरीगेट" पड़ता है, आपको वहाँ छोड़ देंगे| मैंने दिल्लीगेट से लेकर अजमेरीगेट, कश्मीरीगेट, लाहौरीगेट, तुर्कमानगेट, मोरीगेट यहाँ तक कि इंडियागेट तक सारे गेटों के नाम सुन रखे थे| पर फ़ावरीगेट आज पहली बार सुना| पूछ ही लिया - यह फ़ावरीगेट कौन सा है भैया? बोला - वही, जहाँ आग बुझाने वाली टमटमें खड़ी होती हैं| मुझे समझते देर न लगी, वह फ़ायर-स्टेशन में खड़े फ़ायरब्रिगेड को फ़ावरीगेट कह रहा था| मैंने उसे ग़लती का अहसास कराने के बजाए कहा - ठीक है भैया| आप मुझे फ़ावरीगेट पर ही छोड़ देना| उसके चेहरे पर एक चमक सी आई | रिक्शा पर पैडल मारता हुआ बोला - बैठिए| वैसे हमें लगता है आपने "अनवरसिटी" से पढ़ाई नहीं की है| तभी आपको न लिमंट्री पता है, न ही फ़ावरीगेट| अब मेरा दिमाग़ चकराया| मैंने पूछा - कौन सी सिटी? बोला - अनवरसिटी| जहाँ कालिज के बाद की पढ़ाई होती है| मेरा दिमाग़ भन्ना गया| मैंने ज़रा खीझते हुए कहा - अनवरसिटी नहीं, यूनिवर्सिटी | लापरवाही से बोला - एक ही बात है| वैसे आपने कहाँ तक पढ़ाई की है? न चाहते हुए भी मैंने बता दिया - बी. ए. तक| वह बोला - तभी तो कुछ नहीं पता आपको| दो ही अक्षर पढ़े, वो भी उल्टे| इतना तो हम भी बता सकते हैं कि पहले ए आता है, फिर बी| मैंने अपना सिर पीटते हुए कहा - बी. ए. मायने, बैचलर ऑफ़ आर्ट्स | पर तुम क्या समझो? यह कॉमन सेंस की बात है| वो अकड़कर बोला - ऐसा न कहें आप| हमारे पास है "कॉमन साइंस"| बहुत "कॉमन साइंस" है हमारे पास| उसकी बात सुन ग़ुस्से के बजाय इस बार मुझे हँसी आ गई| मैंने हँसते हुए कहा - ठीक कहा तुमने दोस्त| तुम्हारी कॉमन साइंस वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है| आज तुमसे मैंने बहुत कुछ सीखा| चलो अब मुझे यहीं उतार दो| देखो, तुम्हारा फ़ावरीगेट आ गया है| इसके आगे तो तुम जाओगे नहीं, क्योंकि कुछ दिन पहले वहाँ लिमंट्री जो लगी थी| वह विजयी मुस्कान के साथ बोला - देखा मेरी संगत का असर! आपको भी चीज़ें समझ में आने लगी हैं अब| किराया उसके हवाले कर मैंने उसे तो चलता किया, पर मन में ये ख़्याल चल रहे थे कि वाक़ई यह समझदार है, जो अनलॉक के दौर में भी इतनी सावधानी बरत रहा है| वर्ना आमतौर पर तो अब लोग न मास्क लगाए दिख रहे हैं, न सैनिटाइज़ेशन और दो गज़ की दूरी का ध्यान रखते|

ऐसे ही लोगों के लिए राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार 2020 से सम्मानित, देश की बहादुर बच्ची परीकुल भारद्वाज ने त्यौहारों के इस मौसम में, नक़्श के माध्यम से समाज को एक पैग़ाम दिया है| ताकि त्यौहारों की ख़ुशियों में कहीं हम यह न भूल जाएँ कि गंदे वाले कोविड अंकल अब भी घात लगाए बैठे हैं| ज़रा सी लापरवाही फिर से हमें लिमंट्री ज़ोन में ला खड़ा कर सकती है|

Thank you so much "Parikul Bhardwaj ji" for being a part of our campaign #karo_na_karo_naa..


[परीकुल भारद्वाज समाज में नेतृत्व, प्रेरणा तथा ऊंचे हिमालय शिखरों पर दी जाने वाली निस्वार्थ सेवाओं का एक जीवंत उदाहरण है। मात्र 13 साल की उम्र में वीरता, शौर्य का अद्भुत ज़ज्बा रखते हुए, उच्च पर्वत शिखरों पर जोखिम उठाने वाली, परीकुल भारद्वाज राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा “राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार 2020” से सम्मानित हैं| इतनी ऊँचाइयों पर अपनी समाज सेवी गतिविधियों द्वारा समाज हित के लिए योगदान देने वाली, लोगों की जान बचाने के लिए कार्य करने वाली  सबसे कम आयु की पहली लड़की हैं। परिकुल किसी भी  वर्ग, पंथ, धर्म या जाति की परवाह किए बिना जोखिम भरे उच्च शिखरों पर स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं। इस बचाव कार्य हेतु उनका कठिन प्रशिक्षण सिक्स सिग्मा हाई अल्टिट्यूड सेवाओं, आई.टी.बी.पी., एन.डी.आर.एफ. और वायुसेना के संयुक्त तत्वावधान में हुआ है। "नेशनल ज्योग्राफिक चैनल" और "आकाशवाणी" द्वारा भी उनके साहसिक, निस्वार्थ व अथक प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है ।

परीकुल भारद्वाज द्वारा प्राप्त पुरस्कार / सम्मान:-

-थलसेनाध्यक्ष द्वारा सराहना

-इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड 

-विश्व के सर्वश्रेष्ठ 100 रिकॉर्ड धारकों  में से एक 

- सिक्स सिग्मा द्वारा प्रदत्त हाई अल्टि ट्यूड अवॉर्ड|

(Instagram @parikulbhardwaj) ]


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Saturday, October 10, 2020

#करो_न_करो_ना (dos & donts) - Neetu Sharma

 #करो_न_करो_ना (dos & donts) - Neetu Sharma


#करो_न_करो_ना (dos & donts) - Neetu Sharma

कोई 12-13 रोज़ पहले, 27 सितम्बर के "The Times of India" के Delhi edition में छपी ख़बर पढ़कर बेसाख़्ता हँसी आ गई | भोपाल की एक लड़की अपने पिता के ख़िलाफ़ फ़ैमिली कोर्ट जा पहुँची क्योंकि उसके पिता ने उसे कई बार लूडो खेलते हुए हरा दिया था |

दरअसल नोवल कोरोना वायरस कोविड-19 के कारण देशभर में लगे लॉकडाउन के दौरान, समय बिताने के लिए लड़की, उसके भाई-बहन और उनके पिता लूडो खेल लिया करते थे, जिसमें पिता ने बार-बार अपनी लाडली बेटी को हरा दिया | बेटी को यह पिता द्वारा जानबूझ कर किया गया विश्वासघात लगा क्योंकि उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके पिता उसे कभी हरा सकते हैं | शुरू में बेटी को दुख हुआ | फिर दुख, ग़ुस्से में बदला | ग़ुस्सा, अपमान के अहसास में, उसके बाद नाराज़गी, फिर आक्रोश और आख़िरकार इन सारी भावनाओं ने द्वेष का वह विकराल रूप धारण कर लिया कि बेटी ने अपने पिता को पिता कहकर पुकारना तक बंद कर दिया और अदालत का दरवाज़ा खटखटा दिया |

पहली नज़र में यह ख़बर चौंका सकती है | हँसी भी आ सकती है | मगर ज़रा सा गहराई में सोचते ही मामले की गंभीरता समझ में आ जाती है | और तब एक ही बात सही साबित होती है कि पूरे वाक़ये में कोविड के अलावा और किसी का दोष नहीं | न कोविड इस बुरी तरह फैलता, न लॉकडाउन की नौबत आती, न पूरा परिवार एक साथ लूडो खेलने बैठता, और न यह सूरत-ए-हाल बनती कि बाप-बेटी के रिश्ते में दरार पड़ती | 

अगले हफ़्ते शारदीय नवरात्रि पर्व आरम्भ हो रहा है, और उसी के साथ-साथ क़तार में एक के पीछे एक चले आ रहे हैं - दुर्गा पूजा, महानवमी, दशहरा, शरद पूर्णिमा, करवाचौथ, अहोई अष्टमी और दीवाली | पर त्योहारों की इन ख़ुशियों के पीछे कोविड-19 अपना फन फैलाए डरा भी रहा है | बंगाल की दुर्गा पूजा, गुजरात का गरबा-डांडिया, करवाचौथ की कथा और मेहंदी का जमावड़ा या दशहरे की रामलीला, सभी भीड़-भड़क्का वाले त्योहार हैं | लेकिन कहीं भी भीड़ जमा न हो, इस साल प्रशासन की तरफ़ से सख़्त हिदायत है | दिल टूटता ज़रूर है, मगर दूरदर्शिता इसी में है | इसीलिए कोविड को लेकर एक बार फिर देशव्यापी "जन-जागरूकता अभियान" ने ज़ोर पकड़ लिया है | जगह-जगह, हर जगह मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा दिख रहा है -

कोविड-19 से बचाव और सुरक्षित रहने के तीन उपाय :

1. मास्क लगाएँ |

2. दो गज़ दूरी, है ज़रूरी |

3. हाथ और मुँह साफ रखें |

दूरदर्शन का जाना-पहचाना चेहरा और यू-ट्यूबर नीतू शर्मा ने भी नक़्श के माध्यम से यही संदेश दिया है, ताकि त्योहारों की ख़ुशियाँ कहीं एक और लॉकडाउन की नज़्र न हो जाएँ | और कहीं फिर से किसी बाप-बेटी का रिश्ता लूडो खेलते-खेलते अदालत न पहुँच जाए | 

Thank you so much "Neetu Sharma ji" for your message regarding #Karo_na_karo_naa..

[Neetu Sharma is a senior TV anchor and YouTuber. http://www.youtube.com/c/ThoughtfulAffairs].


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Tuesday, June 16, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Chitra Mudgal

#करो न (dos), करो ना (donts) - Chitra Mudgal


#करो न (dos), करो ना (donts) - Chitra Mudgal

प्यासे कौए की कहानी से कौन इंसान अंजान होगा? जिसमें एक होशियार कौआ घड़े के पेंदे में पड़े हुए ज़रा से पानी को ऊपर लाने के लिए एक-एक कर उसमें तब तक कंकड़ डालता है, जब तक पानी इतना ऊपर नहीं आ जाता कि उसकी चोंच पानी तक पहुँच जाए और वह उसे पीकर अपनी प्यास बुझा ले| बाल-साहित्य का अभिन्न अंग बन चुकी यह कहानी आज दुनिया भर में मशहूर है और अनगिनत भाषाओं में पाई जाती है| लेकिन आज ज़माना है, सोशल मीडिया साहित्य का| कुछ अर्सा पहले सोशल मीडिया पर इसी प्यासे कौए की कहानी की एक अलग ही अभिव्यक्ति नज़रों से गुज़री| कहानी की शुरुआत बिल्कुल असल कहानी जैसी ही थी| पर उसका सार अलग और कुछ यूँ था|
प्यासे कौए ने घड़े में झाँका| पानी बहुत कम था| उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुँच सकती थी| उसने आस-पास कुछ कंकड़ पड़े देखे| उसे तुरंत अपने परदादा के परदादा और उनके भी परदादा की विश्वप्रसिद्ध कहानी याद आ गई, जिसके लिए सदियों से उनकी तारीफ़ दुनिया के हर कोने में की जाती रही है| लेकिन 21वीं सदी के आधुनिक कौए ने अपने पूर्वज की समझदारी दोहराने के बजाए, अपनी ख़ुद की होशियारी से काम लेना ज़्यादा मुनासिब समझा| एक-एक कंकड़ छोटी सी चोंच से चुनते और उसे घड़े में डालते-डालते तो हालत और ख़राब हो जाएगी| एक तो प्यास, उस पर यह मशक़्क़त| न बाबा न| इसमें कहीं जान चली गई तो? और बस कौए ने फ़ौरन अपनी होशियारी का परिचय दिया| घड़े के सबसे निचले हिस्से पर चोंच से भरपूर वार किया| तुरंत वहाँ एक छेद हो गया और घड़े के अंदर भरा हुआ पानी बाहर छलक आया| कौए ने जी भर के पानी पिया| अपनी प्यास बुझाई और फुर्र से उड़ गया|
दोनों ही कहानियाँ शिक्षाप्रद हैं| अंतर बस इतना सा है कि पहली हमें यह सिखाती है कि विपत्ति के समय धैर्य और सूझबूझ से काम लेना चाहिए, घबराना नहीं चाहिए| जबकि दूसरी में भी विपत्ति के समय सूझबूझ से काम लेने और न घबराने की बात तो है; पर जो चीज़ ग़ायब है, वह है धैर्य; और उसकी जगह ले ली है अधीरता ने, स्वार्थ ने, शॉर्टकट ने| अधीरता, स्वार्थ और शॉर्टकट ही थे जिन्होंने घड़े को इस लायक़ नहीं छोड़ा कि उसके अंदर मौजूद थोड़े से पानी से कौए के बाद कोई और भी अपनी प्यास बुझा सके|
वैसे हम इंसान भी तो आज यही कर रहे हैं| कोविड-19 के इस कठिन दौर में यह अधीरता, स्वार्थ और शॉर्टकट कुछ ज़्यादा ही उजागर हो रहे हैं, जिन्हें देखकर असल साहित्यकार का दिल रो उठा है| चित्रा मुदगल वह वरिष्ठ लेखिका हैं, जिन्होंने अपने साहित्य द्वारा ऐसे-ऐसे मुद्दों को उठाया, जिन पर अक्सर लोग सोचते भी नहीं थे| कोविड-19 के बारे में भी नक़्श से बात करते हुए चित्रा जी भावुक हो गईं| हमारे अनुरोध पर कोविड मरीज़ों के प्रति समाज के रवैय्ये और ज़िम्मेदारी के विषय में उन्होंने अपना संदेश दिया|

Thank you so much "Chitra Mudgal ji" for your message regarding #Karo na, karo naa..

[Chitra Mudgal is a senior writer and winner of several prestigious awards. 
https://en.wikipedia.org/wiki/Chitra_Mudgal]

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Friday, June 12, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Black &/vs. White

#करो न (dos), करो ना (donts) - Black &/vs. White



#करो न (dos), करो ना (donts) - Black &/vs. White

*I can't breathe.. मैं साँस नहीं ले पा रहा हूँ.. George Floyd !!!! Derek Chauvin !!!! May 25, 2020 !!!! 
*Thousands gathered in Houston, Texas to bid a final farewell to George Floyd !!!!  June 9, 2020 !!!! 
तथाकथित सभ्य, आधुनिक, शिक्षित समाज के "सफ़ेद बनाम काले" श्रृंखला का एक और घिनौना व दिल दहला देने वाला अध्याय | Black vs. White. जिसने एक बार फिर सफ़ेद चमड़ी में दफ़्न कालिख पुते दिलों की क़लई खोल के रख दी| भारत अभी कोविड-19 के मद्देनज़र, ख़ुद को लॉकडाउन की मार से आज़ाद भी न करा पाया था कि अमेरिका में एक बेबस काले को कुछ गोरों ने बेदर्दी के साथ ज़िंदगी से ही आज़ाद कर दिया | 
क्या रंग वाक़ई इतना मायने रखता है ? 
सौभाग्यवश भारत में तो नहीं..
और दुर्भाग्यवश सिर्फ़ इंसानों में..
25 मई, 2020 को अमेरिका में जब सफ़ेद जिल्द के मालिक डेरेक शॉविन और उसके साथी पुलिसकर्मी, काली त्वचा वाले जॉर्ज फ़्लॉयड की सांसें छीन रहे थे; यहाँ भारत में कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन अवधि के दौरान एक काला-सफ़ेद कबूतर का जोड़ा रोज़ मेरे कौतूहल को नए आयाम दे रहा था| शुरू-शुरू में तो मैंने बिल्कुल ग़ौर नहीं किया था | मगर जब एक बार ध्यान गया तो अनलॉक 2.0 में आ जाने तक भी हर रोज़ मेरी नज़रें कबूतर केे इस काले-सफ़ेद जोड़े का ही पीछा करती रहती हैं | किसी की छत हो या किसी की बाल्कनी, अटारी हो या पानी की टंकी, ज़मीन हो या खुला आसमान, हर जगह यह जोड़ा हमेशा, हर वक़्त साथ नज़र आता है | एक पल को भी एक-दूसरे का साथ छोड़ते अभी तक तो मैंने इन्हें नहीं देखा | हद तो यह है कि ज़मीन से उड़ान भी एक साथ भरते हैं और वापिस नीचे उतरते भी एक ही साथ हैं | यानी truely, made for each other. And genuinely, mad for each other. The real Black & White. 
शुरू में मुझे बड़ी हैरानी होती थी कि यह क्या माजरा है? एक कबूतर चाँदनी की तरह बेदाग़ उजला और दूसरा अमावस की तरह घटाटोप अंधेरे सा काला | कोई मेल है ही नहीं | फिर कैसे इन दोनों की यह अटूट जोड़ी बन गई ? वजह अब समझ में आई | शायद कबूतरों का यह black & white जोड़ा black vs. white के बारे में दुनिया को यह पैग़ाम देना चाहता है कि  रंग में नफ़रत नहीं, मौहब्बत खोजें| काला-सफ़ेद एक दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं | 
गोरी चमड़ी पर इतराने वाले भी, सिर के बाल काले ही पसंद करते हैं | सफ़ेद को अगर अमन के रंग की तरह देखा जाता है तो सफ़ेद कफ़न डर का अहसास भी देता है | उड़ते-फिरते सफ़ेद बादल आसमान में ख़ूबसूरत नज़ारा भले ही पेश करें, पर बारिश की पेशीनगोई काली घटा ही करती है | अस्पताल में डॉक्टर का एप्रन और नर्सों की सफ़ेद ड्रेस अगर सम्मान का प्रतीक है, तो इंसाफ़ के मंदिर में वकीलों और जजों के काले कोट व रोब्स अदालत के गौरव की कहानी कहते हैं | दुनिया के एक बड़े हिस्से में दुल्हन का सफ़ेद गाउन शादी की ख़ुशियों का परिचायक है, तो किसी की मौत पर भी सफ़ेद कपड़े ही पहनकर शोक दर्शाना आम परंपरा है | चर्च के पादरी का सफ़ेद लिबास मन में आदर पैदा करता है, तो शर्म-ओ-हया की निशानी काला बुर्क़ा औरत की इज़्ज़त करने को प्रेरित करता है | सफ़ेद संगमर्मर का ताजमहल सारी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है, तो काले हज्र-ए-असवद का बोसा लेने के लिए भी दुनिया-जहान के शायक़ीन अपना सब कुछ लुटाने को बेताब रहते हैं | गोरी राधा और काले कृष्ण की जोड़ी अनगिनत श्रद्धालुओं द्वारा पूजी जाती है; तो काले किसवाह में लिपटे मुक़द्दस काबा शरीफ़ का तवाफ़ करते, सफ़ेद एहराम ज़ेब-ए-तन किए हाजियों को देखकर दिल अक़ीदत से झुक जाता है | रात काली हो तो डराती है, मगर यही काली रात हमारे लिए नींद का सुख लेकर आती है | त्वचा का रंग कितना ही काला क्यों न हो, उसे सफ़ेद दिखाने के लिए कोई भी leukoderma या albinism पसंद नहीं करता है | काला जादू सर चढ़ कर बोलता है, तो भूत-प्रेत संकेतात्मक तौर पर सफ़ेद ही दिखाए जाते हैं | काले कोयले की खान में ही सफ़ेद चमचमाती रोशनी बिखेरता हीरा पाया जाता है | काले कौए और सफ़ेद हंस की चाल की मिसाल एक ही साथ दी जाती है | साहित्य, सफ़ेद काग़ज़ पर काले अक्षरों में ही छापा जाता है | अंतरिक्ष में जितने अहम white dwarf और black dwarf हैं, उतनी ही महत्ता milky way और black hole की है | बुराई बयान करने के लिए blacklist, blackmarket, blackmail जैसे शब्दों का ही प्रयोग नहीं किया जाता है; बल्कि सफेदपोश, सफ़ेद झूठ जैसे शब्द भी उतने ही प्रचलन में हैं | कुल मिलाकर सफ़ेद बिना काला अधूरा है और काले बग़ैर सफ़ेद नामुकम्मल| फिर भी black & white से ज़्यादा black vs. white संकीर्ण मानसिकता पर ऐसा हावी हुआ कि 1950 के दशक में the American civil rights movement was a struggle for the political equality of African Americans. It developed into the Black Power movement in the late 1960s and 1970s, and popularized the slogan "Black is Beautiful". पर इस आंदोलन के लगभग 70 साल बीत जाने के बावजूद white Americans आज भी black Africans को हेय दृष्टि से देख रहे हैं, उनका उत्पीड़न कर रहे हैं, उनकी हत्या कर रहे हैं और देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति का निवास स्थान भी चिल्ला-चिल्लाकर शायद यही कहने की कोशिश कर रहा है कि black & white नहीं, black vs. white ही स्वीकार्य है | तभी तो पूरे देश को चलाने वाला राष्ट्रपति black नहीं WHITE HOUSE में रहता है |
#करो न, करो ना.. के माध्यम से नक़्श की सिर्फ़ एक ही अपील है - 
सबका सम्मान करो न.. 
रंग, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग, किसी भी आधार पर कोई भेदभाव करो ना.. 

(A special thanks to the innocent pair of black & white pigeons for unknowingly being the messenger of spreading message against racism, against black vs. white.)

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Monday, May 25, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

#करो न (dos), करो ना (donts) - आवाज़-औ-अंंदाज़ की दुनिया |

आज ईद-उल-फ़ित्र है | वह त्यौहार जिसका इंतज़ार दो दर्जात पर रहता है | एक, किसी भी और त्यौहार की तरह साल भर लंबा इंतज़ार | और दूसरा एक माह के रोज़ों की पुरख़ुलूस इबादतों के कामयाब इख़्तिताम के ईनाम के तौर पर मिलने वाला ईद का त्यौहार | एक शाम पहले चाँद दिखने के साथ ही गहमागहमी का जो आलम बच्चों से बुज़ुर्गों तक हर इंसान में होता है, उसे अल्फ़ाज़ की ज़िंदां में जकड़ पाना, सोच के पिंजरे में कै़द कर पाना, कुछ नहीं बस नामुमकिन है| लेकिन इस साल इस ना-मुमकिन का 'ना' रोज़ेदारों से नाराज़ हो कर कहीं जा कर छिप बैठा है और ईद के शैदाइयों के लिए तक़रीबन साढ़े चौदह सौ बरस में उस मुमकिन के हवाले कर गया है, जिसकी न तो किसी को तमन्ना थी, न ख़्वाहिश, न अरमान और न ही तसव्वुर | इंसानी तारीख़ की ऐसी पहली ईद, जिसमें आबिदों के लिए मसाजिद के दरवाज़े बंद पाए गए| न नमाज़-ए-जुमा, न तरावीह, न आख़िरी अशरे में मस्जिद में एअतकाफ़, न जुमातुल-विदा और न ही नमाज़-ए-ईद | हालांकि अल्लाह के बंदों ने इबादतों की अदायगी ज़रूर की, पर इज्तिमाई तौर पर मसाजिद या ईदगाह में नहीं, बल्कि अपने-अपने घरों में | 
मजबूरी रही | कोरोना वायरस कोविड-19 की वबा जो बिन बुलाए सिर पर आ पड़ी है | जिसने ईद के तालिब हर ख़ास-ओ-आम को मजबूर कर दिया है कि तीन बार एक-दूसरे के गले मिलकर ईद मुबारक कहने वाले, हाथ भी न मिलाएँ | इस दिन नए कपड़े पहनना मुस्तहिब है, जानते हुए भी नए कपड़े-जूते ख़रीदने बाहर न जाएँ | ईद की सेवइयाँ, ख़ुद ही पकाएँ और ख़ुद ही खाएँ | जिन्हें लगानी आती हो, वे घर में ही मेंहदी से अपनी हथेलियाँ सजाएँ, वर्ना कोरी हथेलियों को देखें और मन मसोस कर रह जाएँ | पुरानी चूड़ियाँ, गहने ही नए समझ कर पहनें और दिल बहलाएँ | ख़ुद ही सजें, घर को सजाएँ और ख़ुद ही यह सब देख कर ख़ुश हो जाएँ क्योंकि मेहमान तो कोई आ नहीं सकता और आप ख़ुद किसी से मिलने कहीं जा नहीं सकते | और सबसे बढ़कर आज कोई ख़ास बटुआ/पर्स/वॉलेट न उठाएँ, घरवालों के अलावा और किसी से तो ईदी मिलने से रही, तो इस साल इस ख़ुशी को भी भूल जाएँ |
आह! क्या दर्द है? क्या कर्ब है? जो नाक़ाबिल-ए-बयान है | क्या यही वह ईद है जिस पर आम इंसान के शायर नज़ीर अकबराबादी ने पूरी एक नज़्म इस ख़ूबसूरती से लिख डाली थी कि वह आने वाली नस्लों के लिए दस्तावेज़ बन गई ? कहते हैं - 
"हो जी में अपने ईद की फ़रहत से शाद-काम |
ख़ूबाँ से अपने-अपने लिए सबने दिल के काम ||
दिल खोल-खोल सब मिले आपस में ख़ास-ओ-आम |
आग़ोश-ए-ख़ल्क़ गुल बदनों से भरे तमाम ||"

या फिर यह वह ई़़द है,  जिस पर हर दौर के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल का वह शेर याद आता है, जो उन्होंने ईद के लिए तो नहीं कहा था, पर जो 25 मई 2020 की ईद पर ऐन फ़िट बैठता है | फ़र्माते हैं - 
"ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में |
गोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है ||
होगा कोई ऐसा भी जो 'ग़ालिब' को न जाने |
शाइ'र तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है ||"

दर-हक़ीक़त मामला तो आजकल ये ही है कि हममें से हर एक अपने-अपने क़फ़स के अपने-अपने गोशे में दुबका बैठा है, इस डर से कि बाहर निकलने पर कहीं कोविड-19 न दबोच ले| मगर अल्लाह की बनाई इतनी बड़ी कायनात में ऐसे अक़ीदतमंदों की भी कोई कमी नहीं, जो न सिर्फ़ ख़ुद इस बात पर यक़ीन रखते हैं कि इंशाल्लाह जल्द ही सब ठीक होगा, बल्कि समाज की तरफ़ अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए पुरउम्मीद पैग़ाम भी देते हैं | 
आम इंसान की लाइफ़-लाइन बन कर तक़रीबन एक सदी से उनके हर सुख-दुख का साथी ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी के जाने-माने अनाउंसर, रेडियो जॉकी, न्यूज़ रीडर नक़्श की ख़ास दर्ख़्वास्त पर पूरे दिल से अपने दिल की बात लेकर नक़्श के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर ईद की मुबारकबाद और कोविड-19 के ताल्लुक़ से अपने तास्सुरात हम सब तक पहुँचाने में भी पीछे नहीं रहे | साथ ही मशहूर फ़िल्म अदाकार रज़ा मुराद की अपील ने भी इन रेडियो जॉकीज़ की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर आवाज़ की दुनिया को एक अनोखा अंदाज़ बख़्शा और पैग़ाम को ख़ासतरीन रुत्बा अता फ़र्माया | 

Thank you so much "Awaz-o-Andaz" i.e. voices of radio for a message regarding #Karo na, karo naa..

*Message in the video is given by - [Shabnam Khan, Radio Jockey, AIR FM Gold; 
Farhat Naaz, Hindi News Reader cum Translator, News Services Division of All India Radio; 
Aamir Azeem, Radio Jockey, AIR FM Gold;
Shabnam Khanam, Announcer cum Compere, External Services Division  of All India Radio; & 
Raza Murad, legendary Bollywood Actor].

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Tuesday, May 19, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future

#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future


#करो न (dos), करो ना (donts) - Children : our Present & Future


कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन ने बचपन लौटा दिया है क़सम से | कल शाम भी कुछ पुराने दोस्तों के साथ वीडियो-कॉन्फ़्रेंसिंग कर ख़ूब धमाचौकड़ी की | तय यह हुआ कि आज सब दोस्त अपने-अपने बचपन की एक नादानी बाक़ी सबको सुनाएँगे | एक दोस्त ने शुरुआत की -
मैं उन दिनों शायद 6-7 साल की रही होंगी | अपनी नानी के साथ कहीं जा रही थी | चलते-चलते नानी के पैरों पर मेरी नज़र पड़ी तो देखा उनकी चप्पल में रस्सी का एक लंबा सा टुकड़ा उलझ गया है जो नानी के साथ-साथ सड़क पर घिसटता हुआ आगे बढ़ रहा है | मैं अपनी नानी से बेहद प्यार करती थी | लिहाज़ा मुझे यह गवारा न हुआ कि रस्सी का वह गुस्ताख़ टुकड़ा मेरी नानी के पैरों का बंधन बने | कहीं यह नानी के पैरों में उलझ कर उन्हें गिरा न दे.. यह सोचते ही मेरा दिल धक से हो गया और नानी को गिरने से बचाने के लिए मैंने एक भी लम्हा और गँवाए बिना फ़ौरन रस्सी के उस दुष्ट टुकड़े पर अपना नन्हा पैर मज़बूती से रख दिया ताकि नानी के क़दम उस धूर्त की साज़िश से आज़ाद करा सकूँ | मगर यह क्या? इधर मेरा पैर उस टुकड़े पर पड़ा और उधर मेरी बुज़ुर्ग चहेती नानी मुँह के बल सड़क पर चारों ख़ाने चित्त | पास से गुज़र रहे राहगीरों ने लपक कर नानी को उठाया और पूछा कि कैसे गिर गईं ? नानी बेचारी कराहती हुई बोलीं - पता नहीं | पर मुझे तो पता था | नानी की तकलीफ़ देखकर मेरे आँसू निकल आए और मैंने रस्सी के टुकड़े की तरफ़ इशारा करके रोते-रोते ही चिल्लाकर कहा - यही है वह बदतमीज़, जिसने मेरी नानी को गिराया है | मुझे पता था यह ऐसा ही करेगा, इसीलिए मैंने इसको रोकने के लिए इस पर अपना पैर भी रखा | पर इसने फिर भी मेरी नानी को गिरा दिया | इतना कह, मैं दहाड़े मार कर रोने लगी | पर अचानक ही पास खड़ी भीड़ और दर्द से कराहती मेरी नानी सभी ठहाका मार कर हँस पड़े | उन सबकी हँसी की वजह उस दिन तो समझ में नहीं आई थी पर अब वह वजह बख़ूबी पता है | बस एक बात अब तक नहीं समझ पाई कि नानी को गिरने से बचाने की जुगत लगाने वाली, मैं उनसे ज़्यादा प्यार करती थी; या गिरकर चोट खाने के बावजूद मेरी नादानी को हँसी में उड़ा देने वाली नानी को मुझसे ज़्यादा प्यार था ?
दूसरे दोस्त ने बताया -
मेरी उम्र उन दिनों शायद 4-5 साल रही होगी और मेरी बहन की 6-7 साल | हमारा घर तीसरी मंज़िल पर था | हम दोनों के हाथ में, याद नहीं क्या चीज़ थी, जो हमें मम्मी को दिखानी थी | होड़ यह थी कि कौन पहले दिखाए? बहन बड़ी थीं | इसलिए वह मुझसे ज़यादा स्पीड में सीढ़ियाँ चढ़ कर मुझसे आगे निकली जा रही थीं, जबकि उनसे पहले मैं मम्मी के पास पहुँचना चाहता था | जब आख़िरी ज़ीने पर भी वह मुझसे आगे ही दिखीं तो अपनी नादान नन्ही अक़्ल का इस्तेमाल कर मैंने उनकी टाँग पकड़ कर उन्हें रोकना चाहा ताकि मैं उनसे आगे निकलकर मम्मी के पास पहले पहुँच सकूँ | मगर इधर मैंने टाँग पकड़ी और उधर कानों को चीरती हुई बहन की चीख़ मेरा दिल दहला गई | मैंने टाँग छोड़ बहन के चेहरे की तरफ़ देखा तो होश फ़ाख़ता हो गए | बहन का चेहरा ख़ून में लथपथ था और वह आसमान सिर पर उठाए बेतहाशा रो रही थीं | इतने में रोने की आवाज़ सुनकर मम्मी भी वहाँ पहुँच गईं | आनन-फ़ानन में बहन को डॉक्टर के पास ले जाया गया, जिन्होंने बताया कि मैंने जो उनकी टाँग पकड़ कर खींची उससे उनका मुँह इस ज़ोर से सीढ़ी से टकराया कि ऊपर वाला एक दाँत शहीद हो गया | वैसे तो उनके दूध के दाँत टूटकर पक्के दाँत निकलने का दौर चल रहा था और ऊपर की तरफ़ का एक दूध का दाँत पहले ही टूट कर पक्का दाँत निकलने के इंतज़ार में था | पर मेरी नादानी से बहन का जो दाँत टूटा वह दूध का नहीं, पक्का दाँत था | अब तो सारे घर पर फ़िक्र के बादल छा गए | लड़की को सारी ज़िंदगी पोपले मुँह के साथ जीना होगा | कितना अजीब लगेगा | चाँद सा चेहरा, पर बिना दाँत | और भी न जाने क्या-क्या? बहरहाल दाँतों के डॉक्टर ने ही तसल्ली दी कि इंतज़ार करो | यूँ तो तीसरी बार दाँत निकलता नहीं है | पर कौन जाने क़ुदरत कोई करिश्मा ही दिखा दे | और वाक़ई करिश्मा हुआ भी | पर वह नहीं जो आप सब समझ रहे हैं, बल्कि यह कि टूटने वाला एक दूध का और एक पक्का दाँत, जो कि एक दूसरे के पड़ोसी थे, उन दोनों की ख़ाली जगह को पुर करता हुआ बीचों-बीच एक अकेला दाँत कुछ इस तरह बहन के मुँह में उगा कि आकार में ज़रा सा चौड़ा था, पर इतना भी नहीं कि देखने में अखरे | और दोनों तरफ़ के पड़ोसी दाँतों से ज़रा-ज़रा सी दूरी पर था, पर वह दूरी भी इतनी नहीं कि देखने में बुरी लगे | यूँ कुल मिलाकर क़ुदरत ने बड़े ही संतुलन के साथ बहन के चेहरे की ख़ूबसूरती बिगड़ने से बचा ली | आज मेरी बहन भी दो बच्चों की माँ हैं और मैं भी अब दो बच्चों का बाप हो गया हूँ | मगर जब भी इस वाक़ये का ज़िक्र छिड़ता है मेरी बहन यह कहने से नहीं चूकती हैं कि सिर्फ़ मेरी वजह से वह कभी पूरे 32 दाँत की मालिक नहीं बन पाईं | लेकिन मैं आजकल यह सोचता हूँ कि कोविड-19 के इस युग में सिर्फ़ मेरी वजह से ही बहन ख़ुद ही नहीं, उनके दाँत भी सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन किए हुए हैं |
एक और दोस्त ने अपने बचपन का क़िस्सा साझा किया -
मैं क़रीब 6-7 या 8 साल की रही होंगी | घर के दरवाज़े के बाहर वाली दीवार में काफ़ी नीचे की तरफ़ एक गहरी दरार हो गई थी, जिसे भरने पर न हमारे घरवालों ने कोई ध्यान दिया और न ही पड़ोसियों ने | पर हम दोनों घरों के ही बच्चों के लिए वह दरार उत्सुकता और कौतूहल का विषय बन गई | हम सभी उस दरार के अंदर झाँक-झाँक कर मानो अपना खोया ख़ज़ाना ढूँढते रहते थे | एक दिन स्कूल से वापिस आकर घर में घुसती, उससे पहले ही एक बार फिर उस दरार ने मुझे अपनी तरफ़ आकर्षित किया | मैंने उसमें पूरी शिद्दत से झाँका और मैं हैरान रह गई | आज सचमुच उस दरार के अंदर दो ख़ूबसूरत, चमकते हुए मोती दिखाई दिए | मैंने वक़्त ज़ाया न करते हुए फ़ौरन अपनी पतली सी कमज़ोर उंगली दरार में डाल दी ताकि दोनों मोती हासिल कर सकूँ | पर मोती दूर थे और उंगली छोटी | इतने में ही घर का दरवाज़ा खुला और मैंने घबराकर उंगली बाहर निकाल ली | उस वक़्त तो मैं अंदर चली गई, पर उन दो मोतियों का मोह मुझे बार-बार उस दरार तक खींच कर लाता रहा | लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हर बार ही मैं मोती हासिल करने में नाकाम होती | बताती किसी को नहीं थी कि कहीं मुझे अपने मोती किसी के साथ बाँटने न पड़ जाएँ | एक दिन फिर से सबकी आँख बचाकर मैं मोती-निकाल मिशन में जुटी हुई थी कि पीछे से मम्मी आ गईं | मुझे दरार में कभी उंगली तो कभी झाड़ू के तिनके से कुछ निकालने की कोशिश करते देख पूछ लिया कि मैं क्या कर रही हूँ | रंगे हाथों पकड़ी जाने पर झूठ न बोल सकी | बता दिया कि इस दरार में मेरे दो मोती हैं, वही निकाल रही हूँ | मम्मी हैरान हुईं कि इतनी बारीक सी दरार के अंदर मोती गए कैसे? बोलीं, हट तो ज़रा | मैं भी तो देखूँ | पहले तो काफ़ी देर उन्हें मेरे मोती दिखे नहीं | फिर मेरे बताए अनुसार आख़िरकार जब उनकी नज़र दोनों मोतियों पर पड़ी तो चिल्लाकर मुझे डाँटते हुए बोलीं - चल अंदर | ख़बरदार जो फिर कभी इस दरार के पास फटकी | मरने के काम कर रही है ? मोती नहीं, वे छिपकली के अंडे हैं | वह तो अच्छा है कि छिपकली ने काटा नहीं तेरे | वर्ना हमें तो पता भी न चलता कि क्या हुआ | फिर बिना देरी दरार को सीमेंट से भरकर बंद कर दिया गया | लेकिन कई साल मैंने इस ग़म में गुज़ार दिए कि मम्मी की वजह से मुझे अपने जादुई मोतियों से हाथ धोना पड़ा | जब तक विज्ञान की किताबों में ख़ुद नहीं पढ़ लिया कि छिपकली अंडे देती है और ये अंडे ख़ूबसूरत मोती जैसे दिखते हैं, तब तक मम्मी मेरी क़ुसूरवार ही रहीं |
एक और दोस्त बोला - 
मैं अपनी नहीं, अपने पापा के बचपन की शरारत बताता हूँ जो मैंने पापा से, दादा-दादी से और कई बड़ों से अनेक बार सुनी है और हर बार उसका बड़ा ही लुत्फ़ लिया है | मेरे पापा बचपन में बेहद शरारती थे | शरारतों का आलम यह था कि पूरा इलाक़ा उन्हें नाम से जानता था | जिधर से गुज़रते कोई शरारत ज़रूर करते | यह वाक़या शायद 50 के दशक का होगा | पापा तब 8-10 साल के रहे होंगे | वे पुरानी दिल्ली के बाड़ा हिन्दू राव में रहते थे | उन दिनों उस इलाक़े में भेड़-बकरियाँ बहुत घूमती थीं | एक दिन शरारत में एक भेड़ की पीठ पर चढ़ बैठे | पापा की तरह भेड़ का भी अपनी तरह का यह पहला अनुभव था | भेड़ एकदम घबरा गई और बौखलाहट में उसने जिधर जगह देखी, दौड़ लगा दी | अब घबराने की बारी पापा की थी | भले ही शरारती थे, पर थे तो बच्चे ही | कहीं भेड़ अपनी पीठ पर से गिरा न दे, इस डर से उन्होंने भेड़ के बालों को मज़बूती से अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया | अब भेड़ और ज़्यादा घबराई, और पहले से ज़्यादा तेज़ दौड़ने लगी | उसकी तेज़ दौड़ से डरकर पापा ने और जो़र से उसके बाल पकड़े | इससे भेड़ और तेज़ी से दौड़ी | और डर का यह सिलसिला पापा और भेड़ दोनों में स्पीड पकड़ता चला गया | इधर भेड़ और पापा की जान पर बनी थी और उधर सड़क पर मौजूद लोग तमाशबीन बन मज़े ले रहे थे | बिदकी हुई भेड़ की पीठ पर पापा की सहमी हुई सवारी ने बग़ीची अच्छा जी से ईश्लरी प्रसाद तक के कई राउंड लगाए | सड़क के दोनों किनारे खड़े लोग इस नायाब मंज़र को देख हँस-हँसकर लोटपोट होते रहे, पर किसी को यह ख़्याल न आया कि इस तमाशे को रोका जाए | आख़िरकार कुछ पापा ने हिम्मत दिखाई और कुछ भेड़ भी थक-थका गई, तब कहीं पापा और भेड़ का मैराथन पूरा हुआ | भेड़ का तो पता नहीं, उसके बाद क्या हुआ? पर पापा कभी नहीं बदले | कम उम्र में यह दुनिया छोड़ गए थे | मगर उनकी शरारतें कभी कम नहीं हुईं | उन जैसा शरारती न हममें से कोई है, न ही हमने कहीं और देखा | बचपन को उन्होंने आख़िरी साँस तक जिया और भरपूर जिया |
बाक़ी दोस्तों ने भी अपने-अपने बचपन की कारस्तानियाँ बयान कीं | किसी और पोस्ट में इसी प्लेटफ़ॉर्म पर वे यब भी ज़रूर आपसे साझा की जाएँगी | लेकिन इस पोस्ट को पढ़कर आपको भी अपने बचपन का कोई कारनामा याद आ गया हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखिएगा | फ़िलहाल तो मेरे ज़हन में यह चल रहा है कि अब से 10-20 बरस बाद अगर हमारी ही तरह दोस्तों के किसी ग्रुप ने इकट्ठा होकर अपने बचपन के क़िस्से दोहराए तो सारी दुनिया के दोस्तों के पास एक क़िस्सा कॉमन होगा | कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन का क़िस्सा, जिसे आज दुनिया के हर कोने में हर बच्चा झेलने को मजबूर है | छिनते बचपन की इसी मजबूरी ने शायद इन मासूम बच्चों को इतना समझदार बना दिया है कि हालात की नज़ाकत को समझते हुए ये हम बड़ों से भी सावधानियाँ बरतने की अपील कर रहे हैं | अब यह हमारा फ़र्ज़ है कि इनकी अपील पर अमल करके इन्हें एक सुरक्षित दुनिया दें |
Thank you dear children for your message through #Karo na, karo naa.. Love you all. 

*Kids in the video - [Ahmad Jamil, Haniya Hasan, Amish Riaz, Ayesha Parvez, Krisha, Maryam Jamil, Aayat Ali, Arham Ali, Arka Rai, Arsh Parvez & Barirah Hasan].

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Friday, May 15, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity

#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity


#करो न (dos), करो ना (donts) - Educational Fraternity

Hazrat Shaikh Shams-Al-Deen Muhammad known as Hazrat Shams Tabrezi (R) [Spiritual Master of Hazrat Maulana Jalal Al Deen Rumi (R)] says -
"There are more fake gurus and false teachers in this world than the number of stars in the visible universe. Don't confuse power-driven, self-centered people with true mentors. A genuine spiritual master will not direct your attention to himself/herself and will not expect absolute obedience or utter admiration from you, but instead will help you to appreciate and admire your inner self. True mentors are as transparent as glass. They let the light of Almighty  pass through them".
शास्त्रों में भी कहा गया है -
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः" ||
इन दो मिसालों से दो चीज़ें साफ़ तौर पर सामने आती हैं | एक - उस्ताद का दर्जा बहरहाल हर किसी से ऊपर है | और दूसरी - दिखावे, मिलावट और धोखे की दुनिया में शिक्षक का विशुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है | गुरु ही तो है जो आदमी को इंसान बनाकर मानवता का सुनहरा भविष्य निर्मित करता है | जबकि दूसरी तरफ़ गुरु के रूप में छलने वाला बहुरूपिया इसी भविष्य को ग्रहण लगाकर मानवता को तार-तार करने में अहम भूमिका अदा करता है | इनमें भी छोटे बच्चों के उस्ताद / उस्तानियों के कंधों पर ज़्यादा ज़िम्मेदारी होती है |
Because a child's mind is, at its best impressionable, like wet clay waiting to be moulded into shapes - good, bad or ugly. According to Benjamin Spock - "85% of the child's mind is developed by the age of five". So these formative years of a human being is utmost crucial. It is vital that what a child is exposed should be healthy and positive. In the global village today, there are streams of messages floating around; generated by love, hatred, concern, selfishness etc. But a person carries forward with oneself what s/he has learnt in the kindergarten. Eg. "share everything, play fair, don't hit people, put things back where you found them, clear up your mess, don't take things that are not yours, when you go out into the world watch out for traffic, hold hands, stick together and blah blah! ". And now in Corona era even some more  messages have joined their predecessors.
 जैसे "मास्क लगाएँ, घर में ही रहें, साबुन और पानी से बारंबार हाथ धोते रहें, अपने आँख, नाक, मुँह को बार-बार न छुएँ, खाँसी-नज़ला होने पर फ़ौरन डॉक्टर से राबता क़ायम करें, भीड़ इकट्ठी न करें वग़ैरह-वग़ैरह |" हालाँकि समाज का हर ज़िम्मेदार इंसान इसका ख़ूब प्रचार-प्रसार कर रहा है, मगर बच्चों के ज़हन पर जो असर उनके अध्यापक की कही बात करती है, वो असर तो बड़े से बड़े और ताक़तवर बादशाह की भी नहीं कर सकती | इसीलिए स्कूल की चारदीवारी और आॉन-लाइन क्लासेज़ के नेटवर्क से बाहर भी समाज के कुछ ज़िम्मेदार शिक्षकों ने एक सराहनीय क़दम उठाते हुए नक़्श के जागरुकता कार्यक्रम #करो न (dos), करो ना (donts) के ज़रिए नन्हें नौनिहालों को ज़रूरी संदेश देकर अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया |

Thank you educational fraternity for your message.

*Teachers in the video - [Mrs. Aruna Shivraj, Principal Himalaya Public School; Mrs. Mamta Sharma; Mrs. Rama Sharma; Mr. Sharib Jameel; Mrs. Shreya].

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Friday, May 8, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Rashida Baqi Haya

#करो न (dos), करो ना (donts) - Rashida Baqi Haya

Rashida Baqi Haya  : Urdu Poet, Writer, Social Worker


Coronavirus Covid-19 ki wajah se jis tarah se sari duniya ki economy charmara gayi hai, aisi haalat shayad hi itne bade paimane par is se pehle kabhi huyi ho. Economy ke hawale se likhit dastavez ki baat karein to be_sakhta America ki mash_hoor bi-weekly business magazine "Forbes" ka naam zehan mein ata hai. Forbes finance, industry, investing aur marketing ke alawa technology, communication, science, politics aur law jaise topics par bhi original articles publish karti hai. Finance aur economy par apni qabil-e-yaqeen lists aur rankings shaya karne ke liye bhi ye magazine jani jati hai. Sabse ameer Americans, top alami companies, sabse taqatwar khawateen ya duniya ke sabse raees yani millionaires/billionaires ki list aur ranking in mein kafi aham hai. 
Isi Forbes magazine ke guzishta edition mein ek report chhapi thi ki Covid-19 kee wajah se sara alam jis lockdown kee qaid se guzar raha hai, usne economy par aisa bura asar dala hai ki duniya ke 51% ameeron ki daulat kam huyi hai. Sath hi is lockdown ne poori duniya se 226 arabpati kam kar diye hain. Padhte hi ek jhatka lagta hai kyonki zahiri taur par ye badi hi tashweesh_naak baat nazar ati hai ki agar sarmayadaar na rahe, paisa hi khatm ho gaya to duniya chalegi kaise? Magar ek lamhe ke liye ankhein band karke dayanatdari se socha jaye to yaqeen maniye ye itne fikr ki bhi baat nahin.
Safah-e-duniya se agar ameer, raees, seth, sahukar, sarmayadaar, jagirdaar, industrialists, bankers, science-daan, siyasat-daan, shayar, adeeb, anchors, artists, architect, afsana-nigar sab ke sab khatm ho jayein to duniya qatayi nahin rukegi. Yun hi chalti rahegi. Lekin agar iske bar-aks Covid-19 ya kisi bhi waba ke sabab raton-raat safayi karne wale, kuda uthane wale, baal kaatne wale, roti pakane wale, juta ganthne wale, kapde dhone wale, khana pakane wale, imaratein banane wale, mazduri karne wale, bijli-pani ka kaam karne wale, gadi chalane wale, gharelu mulazim, doctors aur kisan khatm ho jayein to duniya 10-15 din ke andar-andar puri tarah se seize ho jayegi. Kisan zinda rahein, zindagi rawan rahegi. Jagirdaar sare maujood rahein, kisan khatm ho jayein to qahat pad jayenge. Insan-insan ko kha jayega. To aham kaun hua? Ghareeb ya ghareeb ki wajah se be-shumar paisa kamane wala ameer?
Shayad ye hi wo pal hai jab is lockdown se hamein seekhna hoga ki aaj waqt hai unhein respect dene ka jinhein hum is qabil nahin samajhte. Jinki sadiyon se be-izzati hoti ayi hai, bhookh jinki khuraak hai, faqa jinka naseeb hai, wo kal bhi aise hi the, aaj bhi aise hi hain. Izzat kam huyi hai un millionaires/billionaires ki jinki izzat, jinki pehchan paise tha aur paise hi hai. Aaj wo bhi paisa ganwa kar in ghareebon ki saf mein khade dikh rahe hain. Kahin ye in ghareebon ki sadiyon ki bad_dua ka asar to nahin? Ho sake to ab bhi in ghareebon ko barabari ka darja de kar paise wale nahin balki asal daulatmand ban jayein. Aaj kisi ki 2 waqt ki roti ka intzam kar paise ke bajay thodi si dua kama lein. Warna kisi aur bad_dua ke evaz ek aur lockdown, ek aur economic breakdown ka intzar karein.
Zaruratmandon ki madad ka ye hi jazba, ye hi fikr Hindostan ki mash_hoor-o-ma'roof shayra aur social worker Rashida Baqi Haya ke dil mein bhi hai. Jise unhone Naqsh ke campaign #karo na (dos), karo naa (donts).. ki maarfat samaj tak pohanchaya hai.

Thank you Rashida Baqi Haya Sahiba.


*Rashida Baqi Haya - [Rashida Baqi Haya is a famous Urdu poet, writer and social worker of national repute. She belongs to a royal Pathan family of Rampur, Uttar Pradesh. Her father Maulana Abdul Baqi was a freedom fighter, a well known journalist of his time and worked as the Chief Political Advisor of two Prime Ministers of India i.e. Pandit Jawaharlal Nehru & Mrs. Indira Gandhi.  Her father left for his heavenly abode when she was merely four years old.  Her mother Shahida Baqi Nikhat was a famous poet of persian and Urdu. Rashida Baqi Haya did her schooling from Frank Anthony public School & Cambridge Boarding School, Dehradun. She participated in her inaugural mushaira at the age of just 13. And since then her journey is still continued].


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Monday, May 4, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Neeleshwari Basak

#करो न (dos), करो ना (donts) - Neeleshwari Basak

Neeleshwari Basak : Personality Grooming Guru #करो न, करो ना.. 

May 4, 2020..
i.e. Day 40 of lockdown..
or 1st day of lockdown 3.0. All about little hopes & lots of expectations, desperations, efforts and prayers. 
In an unprecedented situation, currently every country on the globe is in battlefield, indulged in the battle against coronavirus in its own way. Epidemiologists are churning out computer models of how the infection will spread and how many people will get affected. Scientists are struggling to understand the nature of the virus. Druggists are involved in finding a vaccine or drug of the epidemic. Countries are looking at which model to follow to minimise deaths and economic disruption. Health workers are on their toes to save maximum lives. Police personnels are on badly tiring duty to serve the humanity tirelessly. Journalists are busy in making public informed with the latest information. Stranded migrants are wondering when this long exile will get over and they will unite with their families again. Employees are losing their jobs and employers are worried for their own bread & butter. In nutshell, this is an acid test of every country. And for India, this is even more. We are 1.3 billion people. We are the second most populous country in the world. We are the 31st most densely populated nation with 420 persons per square kilometere. We are unique for several reasons. We are poor and CoronaCrisis has left us even more poor. Right now we are sitting on the mouth of a volcano which may explode any moment. But together we can overcome from this horrible situation. Yes, we are 2nd most populous country with 1.3 million brains to think better ideas & 2.6 million hands to support each other. We are poor by money. But we are very rich with a heart of gold. We are densely populated with 420 persons per kilometere. But this is where our strength lives. This is the pseronality of an average Indian groomed by our parents, teachers & well wishers. And this is the spirit which inspired us to have a message from "Personality Grooming Guru - Ms. Neeleshwari Basak" about the pandemic and lockdown through #karo na (dos), karo naa (donts).. 

Thank you Neeleshwari Basak ji. 


*Neeleshwari Basak - [Neeleshwari Basak is the
•Founder-Director Worldwide Institute of Grooming & Pageants.
•Honored with  prestigious " Make in India" Awards.
•Mrs Exquisite International Queen FRu 2015.
•Lifestyle Expert and Beauty Wellness Grooming Guru
•Internationally certified Life Coach & Make up Master
•Corporate Trainer for Senior Management & Doctors of multinational companies
•Model/Film Actor - Producer]

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Thursday, April 30, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Team Naqsh

#करो न (dos), करो ना (donts) - Team Naqsh

A few members from Team Naqsh appealing #करो न, करो ना.. 

Covid-19 ke karan complete lockdown ki surat mein aaj kal morning walk ke liye bahar jana to possible hai nahin. Lihaza aaj kal ghar ki terrace hi morning walk ke liye ideal platform provide kar apne farz ki adaygi kar rahi hai. Sach kaha jaye to yeh option bhi bura nahin hai. Zindagi ko samajhne ka ek naya nazariya isi terrace par develop ho raha hai. Aaj hi subah ki baat hai. Udhar purab mein suraj abhi uga bhi na tha aur idhar uski aamad ke intzar mein, qudrat ki khoobsurti ko niharte huye terrace par meri chehalqadmi shuru hi huyi thi ki tabhi ek aise manzar ne mujhe apna chashmdeed gawah bana diya, jiski gawahi aap ki adalat mein dene se khud ko rok pana mumkin na hua. 
Terrace ke akhiri sire par, kamre mein lage air conditioner ka fan rakha hua hai. Chhat ke surface se zara unchayi par ek stand par laga hone ki wajah se uske neeche thoda sa space bacha hua hai. Maine chehalqadmi shuru hi ki thi ki tabhi terrace par ek billi kahin se dabe panv ayi aur chupke se stand par lage us fan ke neeche kuchh is andaz se chhup kar baith gayi, goya kisi ke sath hide & seek khel rahi ho. Uski is ajab si ada ne mere qadam thithka diye aur hairat ankhon mein liye jab tak yeh samajhun ki ye billi kya waqayi kisi ke sath luka-chhipi khel rahi hai tab tak bijli ki si phurti se billi stand ke neeche se bahar nikli aur stand se koi ek foot ki doori par bani huyi ek metre unchi deewar ki munder par chadh gayi. Phir palak jhapakne se bhi pehle wapas kood kar terrace par a gayi. Magar yeh kya? Munder par chadhte waqt wo akeli thi aur second ke 100ve hisse mein wapas palti to apne jabde mein dabocha hua ek jangli kabutar bhi sath layi thi. Ek minute ke liye dimagh ne kaam karna band kar diya. Jo kabutar mujhe nahin dikha, jis kabutar ko apni maut roopi is billi ki bhanak tak na lagi, us kabutar ke hone ka sahi-sahi andaza is billi ne kaise laga liya? Isse pehle ki mamla samajh kar kuchh bhi react kar paun, billi apne shikar ko danton mein dabaye, vijayi mudra mein chalti huyi meri ankhon ke samne se guzar gayi. Meri nazar lachar kabutar par bhi padi. Use dekh ke kehna mushkil tha ki wo zinda hai. Ekdum shant, na chehre par kisi takleef ka ehsas, na hi khud ko apne shikari ke shikanje se azad karane ki koshish mein koi chhatpatahat ya harkat. Yani, shikari ne apne shikar par ghaat laga kar is tarah waar kiya tha ki shikar hone wale ko sambhalne ka mauqa tak na mila aur kab uski rooh uske jism se parwaz kar gayi, use khud ko bhi pata na chala. Maine khud ko badi malamat bheji ki agar main zara si alert hoti aur hamlawar ke irade bhanp leti to shayad mazloom ki jaan bach jati. Magar ye isliye na ho saka kyonki us waqt mere andar awareness ki kami thi. Theek usi tarah jaise Covid-19 wale mamle mein poori human race mein lack of awareness dekhi gayi. Shikari Coronavirus ne ghaat laga kar insan par hamla kiya aur sambhalne ya samajhne se pehle hazaron-lakhon begunahon ko apna niwala bana liya. Halanki baad mein lockdown aur social distancing naam ki lakeer ko peet kar halat ko qabu karne ki koshishein jari hain, magar kabhi bharpayi na ho sakne wala ek nuqsan to ho hi chuka hai. Just because of due to awareness lack. 
Aaj subah billi wala hadsa ho ya December 2019 se shuru hua Corona ka rona; lack of awareness ki bina par ek kabutar ki jaan gayi ho ya globally millions of innocent human beings ki; in haadson ne sabaq ye hi sikhaya ki har waqt na sirf khud aware & alert raho balki apne aas-paas, apne doston, rishtedaron, colleagues, neighbours, yahan tak ki anjan logon ko bhi ane wale khatron se agah karte raho. Samaj ke liye apni duty nibhane ka ye bhi ek tareeqa hai. Aur bas Naqsh ke awareness campaign #करो न (do), करो ना (donts).. ke liye aaj Naqsh ki poori team ke behalf par, Naqsh ke kuchh members & volunteers bhi sari human race se appeal kar rahe hain ki Novel Coronavirus Covid-19 se bachne ke liye, karne aur na karne layaq har zaruri upay #karo na (do), karo naa (donts).. 


*Team Naqsh : [Team Naqsh is always at your services. With 12 members in General Body and a few volunteers Naqsh is blessed to have such a dedicated team who works all over India as per need. In current Corona-Crisis Naqsh is helping needy with transferring money from our own pockets. Though we have identified many more in need but we have no resources to help them all. Naqsh appeals you to help us by funding our account to help the deserved ones in the hour of this pandemic].

Thank you all. 


Twitter - https://twitter.com/Naqsh17/status/1256169283039555585?s=08

YouTube - https://youtu.be/Z5HcDTk4NbQ

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Tuesday, April 28, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Kanika Singh Ghosh

#करो न (dos), करो ना (donts) - Kanika Singh Ghosh


Kanika Singh Ghosh : Famous Kathak Dancer of world repute


भारतीय उपमहाद्वीप में नृत्य की जिन विभिन्न विधाओं ने जन्म लिया और फली-फूलीं, उनमें शास्त्रीय नृत्य की जड़ें भारत की प्राचीन परमपराओं में हैं | भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में मोटे तौर पर आठ शास्त्रीय नृत्यों -भरतनाट्यम् , कथकली, कत्थक, ओडिसी, मणिपुरी, मोहिनीअट्टम, कुचिपुड़ी और कुटियाट्टम का वर्णन किया है | इधर, 24,000 श्लोक वाले और 29 उपपुराणों में से एक, शिवमहापुराण के अनुसार शिव को संगीत-नृत्य का जनक माना गया है और शिव ही हैं जिन्हें नटराज कहकर भी पुकारा जाता है | नटराज अर्थात नृत्य सम्राट | एक तरफ़ बिना डमरू के रौद्र तांडव करके शिव यह संदेश देते हैं कि जब-जब धरती पर अत्याचार और अन्याय बढ़ेगा, तब-तब उसका संहार निश्चित है| तो दूसरी तरफ़ डमरू बजाकर जब वह आनंद तांडव करते हैं तो प्रकृति में चहुँ ओर आनंद वर्षा होती है | यानी मान्यतानुसार शंकर का नटराज रूप इस बात का सूचक है कि अज्ञानता, अन्याय, अत्याचार, अहंकार के अंधेरे को केवल ज्ञान, संगीत और नृत्य से ही दूर किया जा सकता है |
नोवल कोरोना वायरस कोविड-19 की आपदा ने लगभग हर आस्तिक-नास्तिक को इस बात का अहसास दिलाया है कि दुनिया को आज किसी न किसी रूप में तो अज्ञानता, अन्याय, अत्याचार और अहंकार के अंधेरे ने अपने पाश में जकड़ ही रखा है | शायद इसीलिए कोरोना का रौद्र तांडव अपने चरम पर है | पर उससे उद्धार की आशा में आनंद तांडव की प्रतीक्षा भी कहीं न कहीं नृत्य-प्रेमियों के मन में है | मन की बात, मन में ही न रखते हुए विश्वस्तरीय प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना कनिका सिंह घोष ने नक़्श के कैंपेन #करो न (dos), करो ना (donts).. के माध्यम से समाज को अपना संदेश दिया | 

Thank you so much Kanika Singh Ghosh ji.


*Kanika Singh Ghosh : [Kanika Singh Ghosh is a classical dance Kathak dancer, student of Padmavibhushan Pt. Birju Maharaj ji. Currently teaches students through her own organization Tatkar performing arts. 
One of her famous students is Taapsee Pannu
Awards Shringarmani Award, KAL ke kalakaar, Bombay.
Choreographed dance pieces abroad. 
Pass out from National institute of Kathak (Kathak Kendra) and MA from Lucknow Bhatkhande and Prayag Sangeet Samiti, Allahabad.]

Twitter - https://twitter.com/Naqsh17/status/1255540331212242945?s=08

YouTube - https://youtu.be/C5IrjMse-4A

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Saturday, April 25, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Bharti Taneja

#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Bharti Taneja 

Dr. Bharti Taneja : Internationally Famed Renowned Beauty Expert 

बचपन से सुनते आए थे कि ख़ूबसूरती देखने वाले की नज़र में होती है | पर इस कहावत से रूबरू होने का, इसे समझने का, इसको जीने का मौक़ा अगर किसी ने मुहैय्या कराया तो वो है नोवल कोरोना वायरस कोविड-19.. न, ना | कोरोना का नाम सुन कर इतना बुरा मुँह न बनाएँ| क्योंकि सच यही है | 
ग़ौर कीजिए, आसमान तो हमेशा से ये ही था, पर हमारी छत के ऊपर यह इतना नीला भी हो सकता है कभी सोचने की हिम्मत तक न हुई थी | धुआँ-धुआँ बदरंग आसमान पर लॉकडाउन से पहले ग़लती से कभी नज़र पड़ भी जाती थी तो पहले से ही नकारात्मक ज़िंदगी की नकारात्मकता और भी सरबुलंद हो जाया करती थी | पर अब निहारिए, लॉकडाउन की देन, दूर तक फैले साफ़-सुथरे आसमान को |
सदियों से कलकल करती यमुना के बहाव पर औद्योगीकरण ने कुछ बरस से ऐसा प्रतिबंध लगा रखा था कि न तो इसका साफ़-शफ़्फ़ाफ़ पानी ही तसव्वुर किया जा सकता था और न ही इसके तट पर राधा-कृष्ण की रासलीला के नज़ारे की कल्पना | न तो इसका सड़ांध मारता पानी अपने निकट पल भर भी खड़े रहने की इजाज़त देता था और न ही गंदे नाले के रूप में तब्दील हो चुका इसका वुजूद कोई ऐसा विहंगम दृश्य ही प्रस्तुत करता था जिसे सहेजने को हमारे मोबाइल में मौजूद कैमरा मचल उठे | मगर अब देखिए इसी यमुना की लॉकडाउन की बदौलत दिन-ब-दिन बढ़ती ख़ूबसूरती |
रात में आकाश में तारे भी झिलमिला सकते हैं, कम से कम दो या तीन पीढ़ियाँ तो इस शाश्वत सत्य से पूरी तरह अनभिज्ञ थीं | परन्तु अब तारे ही नहीं, उल्का पिंड, आकाशगंगा, नक्षत्र और कुछ ग्रहों तक के दर्शन बिना दूरबीन या मामूली दूरबीन की मदद से आसानी से कर पा रहे हैं | अभी लॉकडाउन के कारण न तो वातावरण में वायु प्रदूषण की परत है और न ही प्रकाश प्रदूषण की अंधी चकाचौंध | तो फिर दीदार कीजिए लॉकडाउन के इस तोहफ़े यानी सितारों की दुनिया का |
पूर्णबंदी की वजह से अब तक ए. सी. की सर्विस नहीं हो पाई है | पर गर्मी भी तो ऐसी नहीं पड़ रही है कि बिना ए. सी. गुज़ारा किया ही न जा सके | असहनीय गर्मी पड़े भी तो भला कैसे? वजह तो लॉकडाउन के सामने सिसक-सिसक कर दम तोड़ रही है | और लोग एक बार फिर 70-80 के दशक से पहले की उस ख़ूबसूरती को जी भर कर जी रहे हैं जो लुप्तप्राय सी हो गई थी | जी हाँ, सही समझ रहे हैं आप | एक बार फिर, रात में छतों पर सोने की परंपरा पुनर्जीवित हो उठी है | पड़ोसियों को न सिर्फ़ पहचानने लगे हैं, बल्कि उनके साथ लंबी गप्पों के दौर का चलन फिर से जोरों पर है | 
ज़रूरी सेवाएँ देने के लिए घर से निकलने को मजबूर होने वाले कर्मचारी कार के शीशे बरसों बाद नीचे करके फिर से यात्रा करने के मज़े ले पा रहे हैं | परिवार के साथ वक़्त बिताने का नायाब मौक़ा हाथ लग गया है | भूले-बिसरे दोस्त बचपन, लड़कपन, जवानी सबके क़िस्से दोहराकर बीते समय को फिर से जी रहे हैं | और भी ऐसी ढेर सी ख़ूबसूरतियाँ हैं जिन्हें देखने का मौक़ा लॉकडाउन के सबब हमारा नसीब बना है | वही लॉकडाउन जो कोरोना ने करवाया है | इसलिए कोरोना का रोना न रो कर क्यों न ज़िंदगी के इस पड़ाव की ख़ूबसूरती को इस तरह से अपनी नज़रों के रास्ते रूह तक उतार लिया जाए कि आने वाली कई नस्लें उससे लुत्फ़-अंदोज़ होती रहें और कोरोना के डरावने नहीं बल्कि दिलफ़रेब पहलू का ज़िक्र कर अप्रत्यक्ष और अनकहे तौर पर इसका धन्यवाद करती रह सकें | पर उसके लिए ज़िंदा रहना पहली शर्त है | और ज़िंदा रहने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखने के दिशा-निर्देशों का पालन करना | ऐसी ही सलाह व अपील नक़्श के कैंपेन #करो न (dos), करो ना (donts) के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त सौंदर्य विशेषज्ञा डॉक्टर भारती तनेजा ने समाज से की है |
Thank you so much Dr. Bharti Taneja.


*Dr. Bharti Taneja : [https://www.google.com/search?q=bharti+taneja&oq=bharti+tanej&aqs=chrome.0.0j69i57j0l2.7556j0j7&client=ms-android-vivo&sourceid=chrome-mobile&ie=UTF-8]


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Thursday, April 23, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Pragya Pranjali

#करो न (dos), करो ना (donts) - Pragya Pranjali 

Pragya Pranjali : Public Health Professional & Principal Scientist 


Every earthshaking event shakes up our confidence. But a few of them shakes up even our inner soul. Novel Corona Covid-19 is one such thing which is proving not only a health issue, not only a threat to life, but a soul-shaker on a larger scale. You must be wondering by reading to this new terminology i.e. soul-shaker. But believe me it has been added to our vocabulary without even uttering it. All past onslaughts have been slaughtered by corona dynamite. Corona-centric expressions are spreading faster than rumours. Jokes, memes, tik-tok videos about Covid cases in the vicinity have become as common as never before. And so do Covid related casualties. 
Only a couple of days back fear spread among thousands of workers at Asia's biggest wholesale mandi for farm produce in north Delhi's Azadpur after a 57 years old vegetable dealer there died of the Covid-19 infection. 
Yesterday only a 65 year old man tested positive for Covid-19 who has been confined to his flat (in Exotica Elegance Society, Ahimsa Khand-2, Indirapuram, Ghaziabad, U.P.) since the lockdown began on March 24. The infection source is not known yet. Since the only person living in the flat is his wife, her samples have been collected for tests. 
A 45 year old migrant worker died in Jorhat after walking for almost 170 kilometers to reach his home in Golaghat from Nagaland. He was a part of a group of 200 people who, too, walking back home. Medical report for the cause of his death is awaited. 
In north Delhi's Roop Nagar a helper at a fair price shop has tested positive for the novel coronavirus infection. The helper carries out clerical responsibilities at the shop on the frontline to provide dry ration to beneficiaries under the public distribution system during the lockdown period. He closely interacted with a large number of beneficiaries and a few department officials in the last few days when the shop witnessed huge rush of beneficiaries queuing up for their quota of ration. He might have passed on infection to many others. 
So the conclusion is that one should stay at home with minimal or no contact with anybody to stay safe from this unseen enemy called coronavirus. The principal scientist for public health Ms. Pragya Pranjali has conveyed an important message to the society on Naqsh's request regarding #करो न (dos), करो ना (donts). 
Thank you so much Pragya Pranjali ji. 

[Pragya Pranjali is a Public Health Professional working on Women, Children and Adolescent Health issues. 4 Masters to credit, a keen learner to the core, on a globe trotter- 23 states of India and 5 countries- mission addressing health issues not only in India, but also for Tibetans in excile in India, Nepal and Burma for 1.5 decades now. 
She has won several accolades- best employee of the year, recognition from corporates for research in public health- nutrition enhancement program for adolescent girls. Appreciation from Cohesive- India for contribution on study on quality of care indicators for pregnant women. She is associated with UN and is a part of core team to prepare creatives for Census-2021 along with a third party agency. The first video of the same has already been released by office of Registrar General of India- Govt of India. She is involved in several policy charcha, discourses and cross- learning initiatives in North Block- Govt of India. She has authored several research papers, led prestigious research studies in partnership with Govt of India, World Bank, University of Duke, University of Standford, London School of Tropical Medicine etc.]

YouTube - https://youtu.be/U_MN3ngeVU0

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Tuesday, April 21, 2020

#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Mohsin Wali


#करो न (dos), करो ना (donts) - Dr. Mohsin Wali

Padma Shri recepient Dr. Mohsin Wali, Physician to 3 former Presidents of India

Only a day before yesterday Indian Council of Medical Research (ICMR) said 80% of Covid-19 cases are either asymptomatic or with mild symptoms. If 100 people have been infected by Novel Corona Virus, 80 of them will not exhibit any symptoms or mild symptoms of the disease. So these asymptomatic Covid-19 patients are silent carriers.
On the other hand, though the rate of growth of new cases has come down. But things haven't improved enough for the death rate to come down especially in the five countries (US, Spain, Italy, France & Germany) worst hit by the Corona Virus. On the brighter side, however, India's recovery rate is far better than the mentioned Western countries but the death rate here in India, too, is inching up. The deaths have not slowed at the same rate as daily new cases and hence, there has been a steady increase in case fatality rate.
In that case lockdown seems to be a perfect remedy. Quarantine a suspect a big yes. Maintaining Social Distance even within the family need of the hour. Regular hand wash or sanitisation a must. And following all the guidlines is a concern for having a Corona free society to avoid further spread of the infection. None of us should forget that Covid-19 has no vaccine or treatment yet. Hence precaution is the only cure as of now.
Dr. Mohsin Wali, the Padma Shri Award recepient 2007 and has been the physician of India's three former Presidents has appealed and advised the society about  #करो न (dos), करो ना (donts) through Naqsh on our request.

Thank you so much Dr. Mohsin Wali

*Dr. Mohsin Wali [https://en.wikipedia.org/wiki/Mohsin_Wali

YouTube - https://youtu.be/gW6S_TUP9SY

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#करो न (dos), करो ना (donts)

#करो न (dos), करो ना (donts)

साल का एक चौथाई हिस्सा एक बहुत बड़ा धमाका करके चुपके से खिसक लिया, पीछे बचे हुए महीनों को इस अधूरे काम को और बड़े हंगामे के साथ सर-अंजाम देने की ताकीद के साथ |  काम - कोरोना के नाम पर वह सब कुछ करते चले जाने का जो मानव इतिहास में अभूतपूर्व है | 
अभूतपूर्व ? हाँ, यही तो एक शब्द है, जो पिछले चार माह में इतनी बार, इतने संदर्भों में दोहराया गया है कि यह गणना भी अभूतपूर्व हो गई है | "नोवल कोरोना वायरस कोविड 19" नाम की आपदा अभूतपूर्व है क्योंकि इतिहास के पन्नों को खंगालने पर भी बड़ी से बड़ी आपदाएँ नज़र से गुज़रीं, पर यह पहली बार है, जब किसी बीमारी ने समूचे जगत को अपनी चपेट में ले लिया है | यह पहली बार है, जब किसी गाँव, शहर, राज्य, देश, उपमहाद्वीप या महाद्वीप के नहीं सारी दुनिया के लोगों की जान ख़तरे में है | यह पहली बार है, जब चंद हफ़्तों ने लाखों जीवन लील लिए हैं | यह भी पहली बार है कि संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है | और यह भी पहली बार ही है कि मरीज़ों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ नाकाफ़ी साबित हो रही हैं | है तो यह भी पहली ही बार कि करोड़ों किलोमीटर और प्रकाश वर्ष की दूरी तय कर चंद्रमा और मंगल तक पहुँच कर अपनी जीत का लोहा मनवाने वाले, सिर्फ़ एक साँस की दूरी पर मौजूद एक अनदेखे वायरस पर जीत हासिल करने में अब तक नाकाम हैं | और यह भी पहली ही बार है कि मौत के सामने जिंदगी इस तरह घुटने टेक रही है कि धरती पर भगवान का रूप माने जाने वाले डॉक्टर असमंजस में हैं कि सामने पड़े हुए मरीज़ों में से किसे बचाएँ तो किसे मर जाने दें | भारत जैसे देश में पहली बार में यह भी शामिल है कि ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले फ़ैसला नहीं ले पा रहे हैं कि उन्हें कोरोना के क़हर से मर जाना चाहिए या भूख के ग़ज़ब से ? उनके एक तरफ़ कुआँ तो दूसरी तरफ़ खाई है | बाहर निकलेंगे तो कोरोना का वायरस उनके नाक-मुँह से होता हुआ जिस्म में जा सकता है | घर में ही रहेंगे तो भूख का दानव उन्हें परिवार समेत निगल लेगा और उनके जिस्म को रूह से आज़ाद कर देगा | लोगों के संपर्क में आने पर कोरोना लगेगा ही ज़रूरी नहीं, पर दिन में तीन बार भूख तो ज़रूर ही लगेगी | और यह भूख ही शायद वह इकलौती चीज़ है जो इतने सारे अभूतपूर्वों में  एक बार फिर भूतपूर्व साबित हुई है | केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ग़ैर सरकारी संगठन या व्यक्ति विशेष जहाँ कहीं भी आर्थिक रूप से पिछड़े इस वर्ग की भूख का समाधान ले कर पहुँच रहे हैं, यह तबक़ा कोरोना को पीछे और पेट को सामने रख कर सड़कों पर निकलने को मजबूर हुआ दिखाई दे रहा है | एक वक़्त के खाने के लिए घंटों धूप में लाइन लगा कर ये ग़रीब लॉक-डाउन में भी उसी तरह ख़ून-पसीना बहा रहे हैं जैसे सामान्य दिनों में दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए बहाया करते थे | आज भी एक वक़्त के खाने के बाद दूसरे वक़्त के लिए उसी तरह फ़िक्रमंद हैं जैसे लॉक-डाउन से पहले हुआ करते थे | 

17अप्रैल 2020, दोपहर लगभग 12.00 बजे , पूर्वी दिल्ली |

मालूम इन्हें सब है कि कोरोना के कारण इस भयावह स्थिति के लिए निर्देशित dos & donts क्या हैं | पर यह कमबख़्त ग़रीबी.. इन्हें किन्हीं भी #करो न (dos), करो ना (donts) पर अमल करने से रोकती है |

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Monday, January 27, 2020

We, the People of Republic India

We, the people of India..



We, the people of India.. This is how our Preamble gets start with. The hopes and aspirations of the people are described in it. It can be referred to as the preface which highlights the entire Constitution. The preamble is based on the Objectives which was drafted and moved in the Constituent Assembly by Jawaharlal Nehru on 13th December 1946. It was adopted on 26th November 1949 by the Constituent Assembly and came into effect on 26th January 1950. This marked the transition for India into a completely Independent Republic. 

But why it is held on 26th January only? Very valid question.

26th January is significant for India not just because it is celebrated as a Republic Day. Lahore Congress convened on 31st December, 1929 of the Indian National Congress (INC) accepted "Poorn Swaraj" as the goal of the freedom struggle and decided to celebrate January 26 every year as Independence Day. Since 26th January 1930, that day was celebrated by INC as the Independence Day of India every year till 1947 when India got its complete and official Independence on 15th August, 1947. India however decided to retain this date as the day India turned a Constitutional Republic. Thus January 26 becomes our Republic Day. 
But now January 26 has one more significant or rather a more historical event in its kitty in the current year i.e. 2020. This year Republic Day was not been celebrated only on Rajpath in New Delhi but in Mumbai and in many more states all over India with a different flavour. A flavour of protest, a flavour of Satyagrah, a flavour of patriotism, a flavour of peace, a flavour of ahimsa, a flavour of Independence, a flavour of REPUBLIC, a flavour of  hopes and aspirations of the people, by mentioning and registering again.. 
We, the people of India..





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